Tuesday, November 17, 2009
राजनीति और अपना सरोकार
नमस्कार दोस्तों। दो बातें झारखंड की राजनीति व यहां के चौथे स्तंभ के संदर्भ में। पत्रकारिता के क्षेत्र में आए मुझे लगभग चार वर्ष हो रहे हैं, लेकिन इन चार वर्षों में मैने संविधान के चौथे स्तंभ को तथाकथित चौथा स्तंभ बनते देखा है। मेरे सीनियर अक्सर मुझे अपना अनुभव बताते-बताते कह जाते हैं कि आज पत्रकारिता, पत्रकारिता नहीं बल्कि चटुकारिता बन गया है। शायद ऐसा हो भी। लेकिन मै पूरी तरह से इस बात से सहमत नहीं हूं और न ही कभी रहूंगा। आद दुनिया बदल रही है और सारी चीजों का तेजी के साथ व्यवसायीकरण हो रहा है। पत्रकारिता जगत इससे अछूता नहीं। चूंकि समाचार पत्र की दुनिया में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ गई है, इसलिए इस क्षेत्र में भी व्यवसायिक पहलू का हावी होना लाजिमी है। ऐसे में अगर समाचार पत्र (मीडिया हाउस) अगर फायदे के लिए काम करता है तो क्या गलत करता है। क्योंकि अंततः मीडिया हाउस को सर्वाइव करने के लिए लाभ की रणनीति पर तो काम करना ही होगा। सोचने वाली बात यह कि अगर मीडिया हाउस लाभ की रणनीति पर काम न करे तो क्या आने वाले बीस वर्षों में समाचार पत्र का अस्तित्व टिक पाएगा। वह स्थिति में जब पंद्रह रुपये की लागत से प्रिंट होने वीले एक समचार पत्र को लगभग दस रुपये का हानी उठाकर चार से साढ़े चार रुपये में बाजार को उपलब्ध कराया जाता है। हालांकि यह मेरी अपना मत हो सकता है, लेकिन कहीं न कहीं इस मत का मतलब तो है। कम से कम उस नजरिये से देखने पर तो इसका मतलब बिल्कुल निकलता है, जिसमें यह समझने की कोशिश की जाए कि इन्हीं मीडीया हाउस पर आज हजारों लोगों का रोजगार निर्भर है। फिर यह तो अलग ही बात है कि बाबू दुनिया एक बाजार है और यहां सब बिकता है। आप न बिके तो न सही आपके नाम पर कोई और बिक जाएगा....। धन्यवाद आप सब विशेषजनों की प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा। नमस्कार....
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----चुटकी----
ReplyDeleteचीन पंच
ओबामा सरपंच,
भारत के खिलाफ
शुरू हो गया
नया प्रपंच।