Thursday, September 9, 2010
jamshedpur तीन मासूम आंखें कर रहीं सवाल- मां....तुम क्यों रो रही हो...?
जमशेदपुर : तीन मासूमों की मै मां हूं...। उनके मासूम सवालों का मै जवाब हूं। गूंजती है इन मासूमों की किलकारियां मेरी भी गोद में...लेकिन फिर भी दुनिया की हर मां से जुदा मै जिंदगी से उदास हूं। सवाल बनकर रह गई हूं अब इस दुनिया में...न सुहाग है न सहारा। दुनिया की भीड़ में अब रह गई हूं बेसहारा। मैं....! मै हूं अभागी चांदनी...! जिसकी जिंदगी में खुशियां चार दिन की चांदनी की तरह रही और फिर लंबी काली रात आ गई...। कल ही की तो बात लगती है जब मेरी दुनिया आबाद थी। गरीबी के आंगन में भी मेरी जिंदगी खुशहाल थी। पति था, दो बच्चे थे और इंतजार था मेरी कोख में पल रहे नए मेहमान का। लेकिन भगवान ने मेरी जिंदगी के साथ ऐसा मजाक किया कि आज मै महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कालेज (एमजीएम) अस्पताल के एक कोने में अपनी किस्मत का रोना रो रही हूं। अमावस की रात से भी ज्यादा काली है मेरी जिंदगी की हकीकत। अब तो लगता है कि शायद कोई भगवान नहीं होता, होता तो मेरी जिंदगी का यह हश्र न होता। न पति की हत्या होती, न मै दुनिया में अकेली होती। पर हुआ कुछ ऐसा ही। रोज सुबह उठती हूं तो अपने आप से कहती हूं कि काश! मेरी उजड़ी जिंदगी एक ख्वाब हो, और हकीकत में मेरा पति मेरे साथ हो...। लेकिन...हर सुबह की एक ही कहानी। मैैं अकेली मेरे बच्चे अकेले। तीन महीने गुजर गए उस वरदात को हुए जिसने मेरी जिंदगी उजाड़ दी। आखिर क्या बिगाड़ा था मैने किसी का...? क्यों मारा मेरे पति को...? क्यों रहम नहीं खाई मेरे बच्चों पर...? हत्यारों को क्यों रहम न आई मेरे पेट में पल रहे नए मेहमान पर...? भुइयांडीह में क्यों किसी ने हत्या कर दी मेरे पति शंकर की...? हां...शंकर महली नाम था मेरे पति का। बहुत प्यार करता था वह मुझसे। छायानगर के एक छोटे से घर में रहते थे हम, पर इस छोटे से घर में पूरी दुनिया की खुशियां समेट रखी थी हमने। दो बेटे थे उस समय हमारे...। नटखट...और प्यारे। दोनों हम पति पत्नी को जोड़े रखते थे। वो (पति) घर आते तो पापा-पापा कह गले से लिपट जाते...। सुबह उनके पापा काम पे जाते तो साइकिल में साथ बैठ जाते। बहुत खुश थी मै। पर मेरी खुशियों पर न जाने किसकी नजर लगी...और हमारी हंसती खेलती दुनिया उजड़ गई। किसी ने उनको मार डाला। अच्छा होता उनके साथ हमें भी मार देते...। कम से कम आज जिंदगी सवाल बनकर जवाब न मांग रही होती। सुहाग उजड़े अब तीन महीने हो गए। कल ही तो मेरे आंगन नया मेहमान आया, लेकिन खुशियां लेकर नहीं, ढेर सारे सवाल लेकर। ऐसे सवाल जिनका जवाब मै खुद नहीं जानती। एमजीएम के बेबी वार्ड में मेरी कोख से जन्मे इन नये मेहमान की आंखें मुझसे सवाल करतीं है कि ...मां मेरे पापा कहां गए..? मां...हम कहां रहेंगे...? मां...हमारी परवरिश कैसे होगी..? इन मासूम सवालों का जवाब मेरे पास नहीं। मुझे खुद समझ नहीं आता कि मै क्या करूं। पेट पालने का ठिकाना नहीं...। किसी तरह पूर्व विधायक दुलाल भुइयां के रहम से मिलने वाली मदद से पेट पल जाता है। नए मेहमान के आने से उसके बड़े भाई (तीन साल के) बहुत खुश है...। लेकिन खुशी से चमकती आंखें मेरे आसुओं की धारा को देख सहम जातीं है और बार-बार सवाल करतीं है कि मां....तुम क्यों रो रही हो...? मां... चुप हो जाओ...। लेकिन मेरे पास कोई जवाब नहीं होता...! मेरे सगे है तो सही, मायेक में मां-पापा भाई सब है, लेकिन शायद मेरी शादी से उन्हें कोई गिला रहा होगा, इसलिए शायद वक्त के बेरुखी के साथ उन्होंने भी मुझसे आंखें फेर ली है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment