Sunday, October 10, 2010
champai soren becom jharkhand minister
bhado majhi, jamshedpur : चंपई सोरेन के पिता सिमल सोरेन व माता माधो सोरेन को अपने बेटे को ज्यादा न पढ़ा पाने का मलाल है। पिता सिमल सोरेन बताते हैैं कि खेती-बाड़ी कर वे अपने बेटे को जितना पढ़ा सकते थे, उतना पढ़ाया। मैट्रिक तक पढ़ाने के बाद घर की आर्थिक स्थिति उस लायक नहीं थी कि उसे आगे की पढ़ाई कराई जाए, इसलिए खेती-बाड़ी में झोंक दिया। माता माधो सोरेन कहतीं हैं कि हालात ठीक होते तो बेटे को और पढ़ाती। पिता कहते हैैं -'चंपई को ज्यादा पढ़ाते-लिखाते तो भी वह जनता की सेवा करता, अब भी कर रहा है, यह हमारे लिए गर्व की बात है।Ó चंपई के पिता को इस बात के लिए भी गर्व है कि उसके बेटे ने अपने आप को अब भी किसान बनाए रखा है। सफलता के साथ उसके पैरों में पंख नहीं लगे और अब भी अपने गांव से उतना ही लगाव है जितना पहले था। चंपई की माता कहतीं हैैं कि चंपई की शादी कम उम्र में कर देनी पड़ी थी। इसलिए भी उसकी पढ़ाई लिखाई बाधित हुई, लेकिन आज वह जनता के लिए काम कर रहा है, इसपर हमें नाज है।
jharkhand mukti morcha on red carpet
चंपई के गांव में सादगी...सन्नाटा...
भादो माझी, जमशेदपुर : चंपई सोरेन के गांव में शुक्रवार को गजब की खामोशी छाई हुई थी। गांव का लाल राजधानी रांची में मंत्री पद की शपथ ले रहा था लेकिन गांव वाले खुशी से उछलने के बजाय अपने-अपने काम में व्यस्त थे। यह आलम सिर्फ गांव में ही नहीं छाया था, बल्कि खुद चंपई के घर में भी कुछ ऐसी ही चुप्पी थी। घर में चंपई की पत्नी मानको सोरेन रंगाई-पोताई में व्यवस्त थीं तो बहुएं घर के अन्य काम में। बेटे अपने काम से घर से बाहर गए थे जबकि छोटी बेटियां स्कूल। ऐसा नहीं हैै कि चंपई के परिवार व जिलिंजगोड़ा गांव के लोगों को उनके मंत्री बनने की खुशी नहीं है लेकिन इस बार मानो चंपई ने किसी प्रकार का ताम-झाम नहीं करने का निर्देश दे रखा हो। न तो खुशी का प्रदर्शन करने के लिए एक दूसरे को मिठाई खिलाने हेतु घर में मिठाई थी और न ही घर के आंगन में समर्थकों का राजनीतिक अखाड़ा ही लगा था। न ढोल-न नगाड़े, न रंग-न अबीर। सादगी का आलम यह था कि घर के सभी पुरुष सदस्यों के बाहर होने के कारण चंपई के घर में बिजली तक नहीं थी। जेनरेटर चलाने के लिए कोई था नहीं सो, शपथ ग्रहण समारोह का दृश्य भी न देख पाए। बहरहाल पत्रकारों की गतिविधियों ने परिवार को आश्वस्त कर दिया कि चंपई ने शपथ ले ली है। हालांकि इस दौरान चंपई के पिता सिमल सोरेन और माता माधो सोरेन की आंखों में खुशी देखते बन रही थी। बेटे को किसान से मंत्री बनाने तक का सफर माता-पिता की आंखों में जैसे तैर रहा था। 80 की उम्र पार कर चुके चंपई के बूढ़े माता-पिता के शरीर में अपने बेटे की सफलता को देख नई ऊर्जा का संचार हुआ जा रहा था। आम दिनों में अपने कमरे तक सीमित रहने वाले दोनों बूढ़े माता-पिता आज घर के बरामदे पर बैठ सबका अभिवादन स्वीकार कर रहे थे। बड़े बेटे सिमल (उकिल) की पत्नी घर आने वाले लोगों के सत्कार में जुटी थीं तो उनकी ननद भी फोटो अल्बम देख अपने पिता के मंत्री बनने पर फूले नहीं समा रही थी। कुल मिलाकर जिलिंजगोड़ा गांव में शुक्रवार को न तो पटाखे फूटे, न लड्डू बंटे और न ही ढोल बजे। सादगी के साथ गांव के लाल को लालबत्ती मिलने की खुशी मनाई गई।
------------------
गांव वाले सोहराय की तैयारी में मस्त
राजनगर इलाके में पडऩे वाले जिलिंजगोड़ा गांव के लोग शुक्रवार को सोहराय (आदिवासियों की दीपावली) की तैयारी में मस्त दिखे। लड़कियां 'जेरेड़-पोतावÓ (रंगाई-पोताई) में लीन, तो वहीं महिलाएं घर के लिए मिïट्टी ढोतीं दिखीं। गांव के लोगों के लिए आम दिनों की ही तरह शुक्रवार का दिन भी सामान्य ही था।
अधिकांश गांव वालों को जानकारी नहीं
अधिकांश गांव वालों को जानकारी ही नहीं थी कि आखिर हुआ क्या है। उन्हें इतना तो पहले से पता था कि चंपई विधायक हैैं लेकिन वे मंत्री बने हैैं, यह सूचना किसी को न थी। हां, कुछ लोग अवश्य जानते भी थे कि चंपई के मंत्री बनने की बात चल रही है, लेकिन उन्हें यह ठीक-ठीक मालूम नहीं था कि आखिर 'मंत्रीÓ पद होता क्या बला है?
अब भी है चंपई का मिïट्टी से बना पुश्तैनी घर
चंपई सोरेन भले कई बार विधायक रहे हों और अब मंत्री भी बन गए हों, लेकिन वे न तो शहर से दूर बसे, न अपना गांव छोड़ा और न ही मिïट्टी से बने अपने पुश्तैनी घर को तोड़ा। उन्होंने महलनुमा घर बनाया तो है लेकिन पुश्तैनी घर को तोड़ कर नहीं। मिïट्टी से बना घर आज भी चंपई के घर पहुंचते सबसे पहले स्वागत करता है।
संयुक्त परिवार की मिसाल सोरेन बखुल
सोरेन बखुल (हवेली) संयुक्त परिवार की मिसाल है। यहां चंपई सोरेन का पूरा परिवार तो रहता ही है, उनके दो भाई दिकू सोरेन और जवाहरलाल सोरेन का परिवार उनके साथ ही रहता है। पिता सिमल सोरेन, माता माधो सोरेन आज भी परिवार के अभिभावक हैैं। चंपई के बड़े बेटे सिमल सोरेन व मझले बेटे बाबूलाल सोरेन अपनी पत्नी संग परिवार का हिस्सा हैैं तो बेटे बबलू सोरेन, आकाश सोरेन समेत बेटी माधो सोरेन, दुखनी सोरेन व बाले सोरेन भी साथ ही हैैं।
चंपई के आगमन पर मनेगा सोहराय
जिलिंजगोड़ा गांव में इस बार सोहराय समय से पहले ही आ जाएगा। गांव का लाल मंत्री बना है, इसलिए गांव वालों के तैयारी है कि इस बार जब चंपई गांव आएंगे तो उनका स्वागत समारोह किसी पर्व से कम न हो। जिलिंजगोड़ा गांव के माझी बाबा (ग्रामप्रधान) राहुल सोरेन के मुताबिक चंपई के आगमन पर पूरे गांव को फूलों से सजाया जाएगा। उनका स्वागत संथालों के पारंपरिक दासाय नृत्य से किया जाएगा। गांव के ही मानिक हांसदा ने कहा कि चंपई का स्वागत ऐतिहासिक होगा।
भादो माझी, जमशेदपुर : चंपई सोरेन के गांव में शुक्रवार को गजब की खामोशी छाई हुई थी। गांव का लाल राजधानी रांची में मंत्री पद की शपथ ले रहा था लेकिन गांव वाले खुशी से उछलने के बजाय अपने-अपने काम में व्यस्त थे। यह आलम सिर्फ गांव में ही नहीं छाया था, बल्कि खुद चंपई के घर में भी कुछ ऐसी ही चुप्पी थी। घर में चंपई की पत्नी मानको सोरेन रंगाई-पोताई में व्यवस्त थीं तो बहुएं घर के अन्य काम में। बेटे अपने काम से घर से बाहर गए थे जबकि छोटी बेटियां स्कूल। ऐसा नहीं हैै कि चंपई के परिवार व जिलिंजगोड़ा गांव के लोगों को उनके मंत्री बनने की खुशी नहीं है लेकिन इस बार मानो चंपई ने किसी प्रकार का ताम-झाम नहीं करने का निर्देश दे रखा हो। न तो खुशी का प्रदर्शन करने के लिए एक दूसरे को मिठाई खिलाने हेतु घर में मिठाई थी और न ही घर के आंगन में समर्थकों का राजनीतिक अखाड़ा ही लगा था। न ढोल-न नगाड़े, न रंग-न अबीर। सादगी का आलम यह था कि घर के सभी पुरुष सदस्यों के बाहर होने के कारण चंपई के घर में बिजली तक नहीं थी। जेनरेटर चलाने के लिए कोई था नहीं सो, शपथ ग्रहण समारोह का दृश्य भी न देख पाए। बहरहाल पत्रकारों की गतिविधियों ने परिवार को आश्वस्त कर दिया कि चंपई ने शपथ ले ली है। हालांकि इस दौरान चंपई के पिता सिमल सोरेन और माता माधो सोरेन की आंखों में खुशी देखते बन रही थी। बेटे को किसान से मंत्री बनाने तक का सफर माता-पिता की आंखों में जैसे तैर रहा था। 80 की उम्र पार कर चुके चंपई के बूढ़े माता-पिता के शरीर में अपने बेटे की सफलता को देख नई ऊर्जा का संचार हुआ जा रहा था। आम दिनों में अपने कमरे तक सीमित रहने वाले दोनों बूढ़े माता-पिता आज घर के बरामदे पर बैठ सबका अभिवादन स्वीकार कर रहे थे। बड़े बेटे सिमल (उकिल) की पत्नी घर आने वाले लोगों के सत्कार में जुटी थीं तो उनकी ननद भी फोटो अल्बम देख अपने पिता के मंत्री बनने पर फूले नहीं समा रही थी। कुल मिलाकर जिलिंजगोड़ा गांव में शुक्रवार को न तो पटाखे फूटे, न लड्डू बंटे और न ही ढोल बजे। सादगी के साथ गांव के लाल को लालबत्ती मिलने की खुशी मनाई गई।
------------------
गांव वाले सोहराय की तैयारी में मस्त
राजनगर इलाके में पडऩे वाले जिलिंजगोड़ा गांव के लोग शुक्रवार को सोहराय (आदिवासियों की दीपावली) की तैयारी में मस्त दिखे। लड़कियां 'जेरेड़-पोतावÓ (रंगाई-पोताई) में लीन, तो वहीं महिलाएं घर के लिए मिïट्टी ढोतीं दिखीं। गांव के लोगों के लिए आम दिनों की ही तरह शुक्रवार का दिन भी सामान्य ही था।
अधिकांश गांव वालों को जानकारी नहीं
अधिकांश गांव वालों को जानकारी ही नहीं थी कि आखिर हुआ क्या है। उन्हें इतना तो पहले से पता था कि चंपई विधायक हैैं लेकिन वे मंत्री बने हैैं, यह सूचना किसी को न थी। हां, कुछ लोग अवश्य जानते भी थे कि चंपई के मंत्री बनने की बात चल रही है, लेकिन उन्हें यह ठीक-ठीक मालूम नहीं था कि आखिर 'मंत्रीÓ पद होता क्या बला है?
अब भी है चंपई का मिïट्टी से बना पुश्तैनी घर
चंपई सोरेन भले कई बार विधायक रहे हों और अब मंत्री भी बन गए हों, लेकिन वे न तो शहर से दूर बसे, न अपना गांव छोड़ा और न ही मिïट्टी से बने अपने पुश्तैनी घर को तोड़ा। उन्होंने महलनुमा घर बनाया तो है लेकिन पुश्तैनी घर को तोड़ कर नहीं। मिïट्टी से बना घर आज भी चंपई के घर पहुंचते सबसे पहले स्वागत करता है।
संयुक्त परिवार की मिसाल सोरेन बखुल
सोरेन बखुल (हवेली) संयुक्त परिवार की मिसाल है। यहां चंपई सोरेन का पूरा परिवार तो रहता ही है, उनके दो भाई दिकू सोरेन और जवाहरलाल सोरेन का परिवार उनके साथ ही रहता है। पिता सिमल सोरेन, माता माधो सोरेन आज भी परिवार के अभिभावक हैैं। चंपई के बड़े बेटे सिमल सोरेन व मझले बेटे बाबूलाल सोरेन अपनी पत्नी संग परिवार का हिस्सा हैैं तो बेटे बबलू सोरेन, आकाश सोरेन समेत बेटी माधो सोरेन, दुखनी सोरेन व बाले सोरेन भी साथ ही हैैं।
चंपई के आगमन पर मनेगा सोहराय
जिलिंजगोड़ा गांव में इस बार सोहराय समय से पहले ही आ जाएगा। गांव का लाल मंत्री बना है, इसलिए गांव वालों के तैयारी है कि इस बार जब चंपई गांव आएंगे तो उनका स्वागत समारोह किसी पर्व से कम न हो। जिलिंजगोड़ा गांव के माझी बाबा (ग्रामप्रधान) राहुल सोरेन के मुताबिक चंपई के आगमन पर पूरे गांव को फूलों से सजाया जाएगा। उनका स्वागत संथालों के पारंपरिक दासाय नृत्य से किया जाएगा। गांव के ही मानिक हांसदा ने कहा कि चंपई का स्वागत ऐतिहासिक होगा।
Monday, October 4, 2010
ARJUN MUNDA फटफटिया का फेफड़ा, खदरधारियों की जमात
घर आए सरकार निगाहें थीं बेताब
भादो माझी, जमशेदपुर : दोपहर के 3.39 बज रहे थे। मन विचलित था, कहीं मुख्यमंत्री साहब का काफिला 'टाटा' बोल मेरे पहुंचने से पहले ही न निकल जाए। फटफटिया का फेफड़ा धुक-धुका हवा से बातें करता आखिर पहुंच ही गया पारडीह काली मंदिर।
यहां तो मजमा पहले से लगा था। झक सफेद कुर्ता-पायजामा पहने नेताओं की फौज कतार लगाए खड़ी थी। लग रहा था मानो खादी वाले किसी जंग की तैयारी में हों। चंद्रशेखर मिश्रा, विनोद सिंह के साथ-साथ रघुवर खेमे वाले भी तैनात। देवेंद्र सिंह और योगेश मल्होत्रा आगे-पीछे किए जा रहे थे। खैर, राहत की बात यह थी कि सीएम साहब अभी आए नहीं थे, सो इंतजार की घडिय़ां गिनने लगा। देखते-देखते 15 मिनट गुजर गए। मन में आया, थोड़ी और देर से ही आता तो ठीक था, बेकार ही फेफड़ा फूंका। इंतजार की घडिय़ां भारी लगने लगीं। खादी फौज भी बढ़ती गई। अभी जल्दी आने के लिए खुद को कोस ही रहा था कि डीसी मैडम हिमानी पांडेय और एसएसपी साहब अखिलेश झा संग सिटी एसपी जतिन नरवाल भी इंतजार में घड़ी की सुइयों से सवाल करते दिखे।
फिर मन को तसल्ली दी कि डीसी, एसपी खड़े-खड़े 33.1 डिग्री की गर्मी में धूप सेंक रहे है, तो मै भी कुछ मेहनत कर ही लूं। अभी कुछ ही दिनों पहले की तो बात है, अर्जुन मुंडा शहर आए, और एसएसपी साहब को पता भी न चला। तब मुंडा जी विधायक दल के नेता भर थे, अब देखिए सत्ता शिरोमणि बनते ही डीसी-एसपी पिछले पौने घंटे से पारडीह में पसीना बहा रहे है। डीसी भी तो कुछ दिन पहले मिलने पहुंचे भाजपाई भीड़ पर खासी नाराज हुई थीं, लेकिन आज वही भीड़ के बीच जगह पाने को मशक्कत कर रही थीं। मजे की बात यह कि मंदिर की सीढ़ी से सट कर आईएएस-आईपीएस ट्रैफिक कंट्रोल कर रहे थे कि दनदनाती लाल झंडे वाली सूमो सामने से गुजरी। संकेत मिल गया कि सीएम साहब पधार गए हैं, फिर क्या था 'खादी फौज के अंदर तो मानो दोगुना जोश आ गया। सिंगा बाजा बजने लगा, भीड़ में चेहरा दिखाने की जंग शुरू हो गई। सफेद चमचमाती एम्बेसडर कार आकर ठीक मंदिर के सामने रुकी और उसमें से उतरे जमशेदपुर के लाल अर्जुन मुंडा। कैमरे के फ्लैश चमकने लगे, और खादी फौज की जंग जोरदार होने लगी। धक्का-मुक्की, चिल्ल-पौं अपने शबाब पर। सफारी सूट वाले सुरक्षा कर्मी फार्म में आ चुके थे। लगे धकियाने खादी-फौज को। ऐसे में कौन महानगर अध्यक्ष और कौन व्यापार प्रकोष्ठ अध्यक्ष...कोई समझ नहीं आया। सब घिघियाते सीएम से सटने के प्रयास में अंतिम ताकत तक जूझते रहे। किसी तरह जिद्दोजहद के बीच मुंडा पारडीह कालीमंदिर में जूता उतार कर घुस गए। उनकी पत्नी ने काबिल कूटनीतिज्ञ का परिचय देते हुए भीड़ से अलग चुपके से मंदिर में प्रवेश किया। बहरहाल मुंडा मंदिर घुसे, पूजा की और मंदिर के पुजारियों संग कुल्हड़ में चाय भी पी। फिर निकल गए नगर प्रवेश के लिए। मुंडा मंदिर से निकले तो एसएसपी ने अगवानी की। मंदिर की सीढ़ी पर मुंडा रुके और कार्यकर्ताओं का अभिवादन किया। इतने भर में कार्यकर्ता गदगद। फिर वे गाड़ी में सवार हो निकल गए धूल उड़ाते। एसएसपी-डीसी भी मुंडा के साथ हो लिए। मैं भी हो लिया अपनी फटफटिया से। दो दर्जन से अधिक सैकड़ों सीसी वाली गाडिय़ों से लोहा लेती मेरी फटफटी भी आज तो जोश में थी। किसी तरह आगे बढ़ा तो देखा कि तय रूट-चार्ट अचानक बदल दिया गया। काफिला मानगो थाना रोड के बजाय डिमना रोड की ओर मुड़ गया। मरता क्या न करता, मैं भी पीछे दौड़ा। सोचा कुछ छूट गया तो आफिस में क्लास लगेगी। शॉर्टकट हो लिया मानगो थाना रोड से। रास्ते में देखा तो नजारा गजब का था। मुंडा की अगवानी में खड़े भाजपाई दुखी-हताश। वजह, मुंडा दूसरे रास्ते निकल लिए। सड़क किनारे टेंट लगाए भाजपाइयों को सड़क से आते-जाते बस्ती वाले मुंह चिढ़ाते लग रहे थे। खैर शॉर्टकट के चक्कर में मैैं पहले पहुंच गया मानगो चौक। यहां पहले से भाजपाई मोर्चा संभाले खड़े थे। विकास सिंह, जगदीश सिंह मुंडा ने कमान संभाल रखी थी, तो विक्षुब्ध खेमे के मनोज सिंह भी मोर्चे पर थे। जैसे ही मुंडा पहुंचे क्रेडिट वार शुरू हो गया। इस क्रेडिट वार में झामुमो वाले भी बाबर के नेतृत्व में उतर गए। इस दौरान मानगो में सत्ता का रसूख तब दिखा तब सीएम के लिए रास्ता साफ रखने के लिए एक तरफ की सड़क बंद कर दी गई। इससे मैं भी फंस गया। मुख्यमंत्री का काफिला सायरन बजाता वहां से निकल गया। किसी तरह पुलिस वालों को हनक दिखा मैैं आगे बढ़ा। शीतला मंदिर के पास फिर सिपाही ने रोक दिया। हाथ में लाठी थी वरना ढीठ की तरह बढ़ ही जाता। सो, सिपाही को किनारे निकलने दिया और आगे बढ़ा लेकिन आगे फिर फंस गया। हार कर बाद में 'सब-वे का सहारा लेना पड़ा। साकची की आधी ट्रैफिक मेरे पीछे हो ली और हम एमजीएम हॉस्टल के सामने से आमबगान की ओर निकल गए। होटल स्मिता के सामने निकले तो चूड़ी पहनी पुलिसवालियों ने मुस्कुराते हुए कहा -'इधर से नहीं।फिर शुरू हुई साकची गोलचक्कर पहुंचने की मेरी जंग। किसी तरह टैगोर एकेडमी की तरफ से पहुंच ही गया। यहां सड़क खाली करा, चारों और ट्रैफिक रोक मुंडा की सभा शुरू हो चुकी थी। अमरप्रीत सिंह काले माइक थामे मुंडा महिमा में लीन थे और महानगर अध्यक्ष चंद्रशेखर मिश्रा, पूर्व अध्यक्ष विनोद सिंह, नंदजी प्रसाद, महेशचंद्र शर्मा स्टेज पर चढऩे की जिद्दोजहद कर रहे थे। सभा हुई, मुंडा ने दावे किए, घोषणाएं कीं। नसीहत भी दे डाली कि माला पर पैसे खर्च न करो, गरीबों में पैसे बांटो। पर फिर भी सीएम से सटने के लिए 51-51 किलो की माला लेकर लोग मंच पर चढ़ते रहे। यहां मुंडा जी को टोपी पहनाई गई। लेकिन इस दौरान बीच सड़क पर मुंडा को देखने के लिए भीड़ खूब जुटी। इसके बाद काफिला पहुंचा भाजपा कार्यालय, ठीक बसंत टाकिज के सामने। यहां भी सीएम के लिए सड़क बंद कर दी गई थी। बेचारा मैैं भी फंस गया। गाड़ी डायमंड वस्त्रालय के सामने खड़ी कर सभा में गया। मुंडा जी की आवभगत में यहां भी खास इंतजाम था। छोटा सा मंच था, और हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष मंच टूटने से जख्मी हुए थे, इसलिए एसएसपी व डीसी मंच बचाने के लिए पसीना बहाते दिखे। खुद एसएसपी ने नेताओं को मंच से उतारना शुरू किया, लेकिन उतरने को कोई तैयार कहां हो रहा था। चंद्रशेखर मिश्रा से मदद मांगी, एक की ओर इशारा भी किया, लेकिन वह एसएसपी के कहने पर उतरा तो जरूर, लेकिन एसएसपी की नजर हटते ही फिर जा चढ़ा। यहां मुंडा मुकुट धरे दिखे, हाथों में तलवार भी सजी, लेकिन लगे हाथों कार्यकर्ताओं को नसीहत दे डाली कि मुख्य सड़क पर कार्यक्रम न करें। कहा-सीएम ही सड़क जाम करेगा क्या? शोभा सामंत व विनोद सिंह ने यहां मंच की शोभा बढ़ाई। यहां से काफिला निकल गया घोड़ाबांधा के लिए। चूंकि मेरी गाड़ी दूर खड़ी थी, सो ज्यादा मेहनत न करते हुए पीछे आ रहा हूं...की तर्ज पर आराम से हिलते हुए पीछे हो लिया। मजे की बात यह कि साकची से घोड़ाबांधा तक करीब आधा दर्जन जगहों पर मुंडा का स्वागत हुआ। फटफटी की गर्दन मरोड़ किसी तरह घोड़ाबांधा पहुंचा तो यहां नजारा दिलचस्प दिखा। झारखंड मुक्ति मोर्चा पूरी तरह भगवा रंग में रंगा दिखा। रामदास सोरेन-अर्जुन मुंडा भाई-भाई के अंदाज में दिखे। मुंडा पहुंचे तो पहले रामदास से गले लगे। दोनों हाथों में हाथ लिए मुंडा आवास के पास पहुंचे। इतने में उनके घर की छत से आतिशबाजी शुरू हो गई। अचानक लगा घोड़ाबांधा में दीपावली मन रही है। घर के गेट पर सीएम साहब की मां सायरा मुंडा को पहले से ही मेरे जैसे दो-चार लोग घेरे पड़े थे। क्या चाहती है बेटे से..? क्या आशीर्वाद देंगी..? सरीखे सवाल लेकर वे उनसे जूझ रहे थे। मुंडा गेट पर पहुंचे तो मां का मन नहीं माना और आरती लेकर पहुंच गईं गेट पर। बेटे की आरती उतारी, बहू को स्नेह दिया और गृहप्रवेश कराया। साथ में रामदास भी थे, सो उन्हें भी मीठा खिला दिया। भीड़-भाड़ ज्यादा देख रामदास घर के लिए निकल गए। मुंडा अपनी पत्नी संग घर घुस गए। मैंने भी सोचा मुंडा जी सीएम हो गए है, यहीं से निकलना पड़ेगा। सांसद थे तो बैठ कर देश-दुनिया की बातें हो भी जाया करती थीं। लेकिन अचानक घर घुसते-घुसते मुख्यमंत्री जी ने मुझे आवाज दी..और कहा हॉल में बैठो आ रहा हूं। बस फिर क्या हॉल में बैठ गया अपने सीएम संग गुफ्तगू करने को। अंदर गया तो देखा डीसी मैडम, एसएसपी साहब व सिटी एसपी पहले से विराजमान हैैं। बगल में मैं भी हो लिया। वे मुझे देख अंग्रेजी में टिट-बिट करने लगे तो मैंने भी मुख्यमंत्री के पहुंचते ही संथाली में टिट-बिट शुरू की। कुछ बातचीत कर खुशी मन से चल पड़ा दफ्तर की ओर।
Subscribe to:
Posts (Atom)