Sunday, October 10, 2010

jharkhand mukti morcha on red carpet

चंपई के गांव में सादगी...सन्नाटा...



भादो माझी, जमशेदपुर : चंपई सोरेन के गांव में शुक्रवार को गजब की खामोशी छाई हुई थी। गांव का लाल राजधानी रांची में मंत्री पद की शपथ ले रहा था लेकिन गांव वाले खुशी से उछलने के बजाय अपने-अपने काम में व्यस्त थे। यह आलम सिर्फ गांव में ही नहीं छाया था, बल्कि खुद चंपई के घर में भी कुछ ऐसी ही चुप्पी थी। घर में चंपई की पत्नी मानको सोरेन रंगाई-पोताई में व्यवस्त थीं तो बहुएं घर के अन्य काम में। बेटे अपने काम से घर से बाहर गए थे जबकि छोटी बेटियां स्कूल। ऐसा नहीं हैै कि चंपई के परिवार व जिलिंजगोड़ा गांव के लोगों को उनके मंत्री बनने की खुशी नहीं है लेकिन इस बार मानो चंपई ने किसी प्रकार का ताम-झाम नहीं करने का निर्देश दे रखा हो। न तो खुशी का प्रदर्शन करने के लिए एक दूसरे को मिठाई खिलाने हेतु घर में मिठाई थी और न ही घर के आंगन में समर्थकों का राजनीतिक अखाड़ा ही लगा था। न ढोल-न नगाड़े, न रंग-न अबीर। सादगी का आलम यह था कि घर के सभी पुरुष सदस्यों के बाहर होने के कारण चंपई के घर में बिजली तक नहीं थी। जेनरेटर चलाने के लिए कोई था नहीं सो, शपथ ग्रहण समारोह का दृश्य भी न देख पाए। बहरहाल पत्रकारों की गतिविधियों ने परिवार को आश्वस्त कर दिया कि चंपई ने शपथ ले ली है। हालांकि इस दौरान चंपई के पिता सिमल सोरेन और माता माधो सोरेन की आंखों में खुशी देखते बन रही थी। बेटे को किसान से मंत्री बनाने तक का सफर माता-पिता की आंखों में जैसे तैर रहा था। 80 की उम्र पार कर चुके चंपई के बूढ़े माता-पिता के शरीर में अपने बेटे की सफलता को देख नई ऊर्जा का संचार हुआ जा रहा था। आम दिनों में अपने कमरे तक सीमित रहने वाले दोनों बूढ़े माता-पिता आज घर के बरामदे पर बैठ सबका अभिवादन स्वीकार कर रहे थे। बड़े बेटे सिमल (उकिल) की पत्नी घर आने वाले लोगों के सत्कार में जुटी थीं तो उनकी ननद भी फोटो अल्बम देख अपने पिता के मंत्री बनने पर फूले नहीं समा रही थी। कुल मिलाकर जिलिंजगोड़ा गांव में शुक्रवार को न तो पटाखे फूटे, न लड्डू बंटे और न ही ढोल बजे। सादगी के साथ गांव के लाल को लालबत्ती मिलने की खुशी मनाई गई।
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गांव वाले सोहराय की तैयारी में मस्त
राजनगर इलाके में पडऩे वाले जिलिंजगोड़ा गांव के लोग शुक्रवार को सोहराय (आदिवासियों की दीपावली) की तैयारी में मस्त दिखे। लड़कियां 'जेरेड़-पोतावÓ (रंगाई-पोताई) में लीन, तो वहीं महिलाएं घर के लिए मिïट्टी ढोतीं दिखीं। गांव के लोगों के लिए आम दिनों की ही तरह शुक्रवार का दिन भी सामान्य ही था।
अधिकांश गांव वालों को जानकारी नहीं
अधिकांश गांव वालों को जानकारी ही नहीं थी कि आखिर हुआ क्या है। उन्हें इतना तो पहले से पता था कि चंपई विधायक हैैं लेकिन वे मंत्री बने हैैं, यह सूचना किसी को न थी। हां, कुछ लोग अवश्य जानते भी थे कि चंपई के मंत्री बनने की बात चल रही है, लेकिन उन्हें यह ठीक-ठीक मालूम नहीं था कि आखिर 'मंत्रीÓ पद होता क्या बला है?
अब भी है चंपई का मिïट्टी से बना पुश्तैनी घर 
चंपई सोरेन भले कई बार विधायक रहे हों और अब मंत्री भी बन गए हों, लेकिन वे न तो शहर से दूर बसे, न अपना गांव छोड़ा और न ही मिïट्टी से बने अपने पुश्तैनी घर को तोड़ा। उन्होंने महलनुमा घर बनाया तो है लेकिन पुश्तैनी घर को तोड़ कर नहीं। मिïट्टी से बना घर आज भी चंपई के घर पहुंचते सबसे पहले स्वागत करता है।
संयुक्त परिवार की मिसाल सोरेन बखुल
सोरेन बखुल (हवेली) संयुक्त परिवार की मिसाल है। यहां चंपई सोरेन का पूरा परिवार तो रहता ही है, उनके दो भाई दिकू सोरेन और जवाहरलाल सोरेन का परिवार उनके साथ ही रहता है। पिता सिमल सोरेन, माता माधो सोरेन आज भी परिवार के अभिभावक हैैं। चंपई के बड़े बेटे सिमल सोरेन व मझले बेटे बाबूलाल सोरेन अपनी पत्नी संग परिवार का हिस्सा हैैं तो बेटे बबलू सोरेन, आकाश सोरेन समेत बेटी माधो सोरेन, दुखनी सोरेन व बाले सोरेन भी साथ ही हैैं।
चंपई के आगमन पर मनेगा सोहराय
जिलिंजगोड़ा गांव में इस बार सोहराय समय से पहले ही आ जाएगा। गांव का लाल मंत्री बना है, इसलिए गांव वालों के तैयारी है कि इस बार जब चंपई गांव आएंगे तो उनका स्वागत समारोह किसी पर्व से कम न हो। जिलिंजगोड़ा गांव के माझी बाबा (ग्रामप्रधान) राहुल सोरेन के मुताबिक चंपई के आगमन पर पूरे गांव को फूलों से सजाया जाएगा। उनका स्वागत संथालों के पारंपरिक दासाय नृत्य से किया जाएगा। गांव के ही मानिक हांसदा ने कहा कि चंपई का स्वागत ऐतिहासिक होगा।

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