Friday, April 23, 2010
jamshedpur subarnarekha rever pollution
अभागी स्वर्णरेखा
कभी दुर्गम पहाडि़यों से कल-कल बहती स्वर्णरेखा नदी आज बढ़ते शहरीकरण और लोगों की उदासीनता के कारण खतरे में है। प्रदूषण का पर्याय बनती जा रही इस नदी पर अगर आज ध्यान न दिया गया तो कल को इसे देख इंसानियत को शर्मिंदा होना पड़ेगा। सूखती धारा और जमें पानी की दुर्गंध आज से ही इस खतरे की और इशारा कर रही है। पूर्वी सिंहभूम के बड़े इलाके में फैली इस नदी की ऐसी हालत के पीछे सबसे बड़ा हाथ जमशेदपुर का है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अध्ययन को आधार माना जाए तो यह नदी जमशेदपुर से गुजरने के बाद इतनी प्रदूषित हो जाती है कि इसे धीमा जहर कहा जाए तो गलत न होगा। यानी जिस जमशेदपुर शहर के लोग आज भी नदियों को पूजते हैं, वहां स्वर्णरेखा की पवित्रता को तार-तार किया जा रहा है। रफ्तार के आधार पर देश की आठवीं नदी के रूप में पहचानी जाने वाली इस पठारी नदी की इस दुर्दशा के पीछे कारण कई हैं, लेकिन समाधान एक है..इच्छाशक्ति। फिर चाहे वह सरकार की हो, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हो या फिर हमारी..। नदी की ऐसी हालत के कारणों व इससे निपटने के उपायों की पड़ताल कर रहे हैं भादो माझी..
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जमशेदपुर : कल-कल करते हुए सबको शुद्ध और पवित्र करने वाली तथा प्यास बुझाते हुए भूमि को सींच कर अन्न-भंडार देने वाली स्वर्णरेखा नदी आज स्वयं प्रदूषित होकर शुद्धिकरण की बाट जोह रही है। राज्य सरकार केंद्र की राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना पर टकटकी लगाए बैठी है, इस हकीकत से मुंह मोड़े कि वक्त की रेत ज्यों-ज्यों फिसल रही है त्यों-त्यों अभागी स्वर्णरेखा का पानी जहर होता जा रहा है।
हकीकत के आईने में झलक रही स्वर्णरेखा की दुर्दशा देखने से सरकार को कोई सरोकार नहीं, तभी तो अभागी स्वर्णरेखा के तिल-तिल तड़पने का विलाप सुन कर भी सरकार सन्नाटे में है। नदी के तट जल भंडार से रिक्त होकर गंदगी के अतिक्रमण से अपनी बदहाली के आंसू बहाने को मजबूर हैं और इसका पानी लगातार जहर में तब्दील होता जा रहा है। सेंट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के सर्वेक्षण को आधार माना जाए तो पठारी इलाकों से होकर गुजरने वाली देश की इस सबसे तेज रफ्तार (12 बिलियन-एम3/वर्ष) नदी का पानी आज इस्तेमाल करने के लायक नहीं बचा।
दो राज्यों का 470 किलोमीटर लम्बा सफर तय करने वाली स्वर्णरेखा रांची से जब निकलती है तो हुंडरू जलप्रपात पहुंच खिलखिलाती-बलखाती बाल्यावस्था की याद दिलाती है, लेकिन जमशेदपुर पहुंचते-पहुंचते तरुणावस्था की ओर पैर रखती यह नदी आज अपने तटों को भी सुरक्षित नहीं कर पा रही है। एक और जहां गंदगी का साम्राज्य नदी पर दोमुहानी से भुइयांडीह तक व्याप्त है तो वहीं दूसरी ओर औद्योगिकीकरण का श्राप भी नदी के पानी को शापित करता दिखता है। इंाडियन सोसायटी आफ क्रोनोबायोलाजी के सदस्य प्रो. केके शर्मा के मुताबिक नदी का पानी गंदा होता जा रहा है, इससे इंसानों को तो अप्रत्यक्ष रूप से हानि पहुंचेगी ही, लेकिन मछलियों व जल जीवों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा।
जमशेदपुर के 11 सिवरेज को बर्दाश्त करने की मजबूरी :- राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना की रिपोर्ट के मुताबिक देश की आठवीं सबसे तेज बहाव वाली नदी होने का गौरव प्राप्त कर चुकी स्वर्णरेखा नदी इंडस्ट्रियल सिटी जमशेदपुर से गुजरने के दौरान सबसे ज्यादा प्रदूषित होती है। शहर में सिवरेज सिस्टम के ट्रीटमेंट (शुद्धिकरण) की व्यवस्था न होने के कारण 11 ऐसे नाले नदी में छोड़ दिये गये हैं जो सीधे तौर पर नदी में जहर घोल रहे हैं। ये सारे सिवरेज वैसे हैं जो विशुद्ध रूप से गंदे नाले हैं, और सीधे शौचालयों से होते हुए नदी पहुंचते हैं।
पाइपलाइन में 30 करोड़ की केंद्रीय योजना :- प्रदूषित स्वर्णरेखा के लिए जवाहरलाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन (जेएनएनयूआरएम) मिशन के तहत नदी को प्रदूषण मुक्त करने व इसके घाटों की सुरक्षा सुनिश्चित करने समेत सौंदर्यीकरण हेतु 30 करोड़ रुपये की योजना प्रस्तावित है। इस राशि से स्वर्णरेखा का सौंदर्यीकरण कार्य तो किया ही जाएगा, डिमना लेक को भी इस राशि का लाभ मिलेगा।
जमशेदपुर से बढ़ते ही बिगड़ जाता नदी का स्वाद : स्वर्णरेखा नदी का स्वाद (गुणवत्ता) जमशेदपुर का सफर तय करने के बाद बिगड़ता चला जाता है। आंकड़ें खुद इसकी गवाही देते हैं। सेंट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, भारत सरकार द्वारा उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक जमशेदपुर पहुंचने से पूर्व चांडिल में नदी की गुणवत्ता ठीक-ठाक रहती है। यहां केमिकल आक्सिजन डिमांड (सीओडी) 9.0 एमजी एक होता है, जो जमशेदपुर में 22.0 का आंकड़ा पार कर जाता है। बीओडी की स्थिति भी चंडिल में 0.5 होती है तो नगर आते-आते यह 1.3 हो जाती है। अलकलानिटी भी चांडिल में 56 होती है जो शहर में 142 तक पहुंच कर हार्ड हो जाती है।
37 का सितम :- स्वर्णरेखा नदी देश के उन 37 नदियों में शामिल है जिन्हें प्रदूषित नदी के रूप में चिह्नित किया गया है। राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) के तहत इन 37 नदियों के पानी की गुणवत्ता में सुधार के लिए प्रदूषण घटाने हेतु इन विशेष अभियान चलाया जा रहा है। जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत भी नदी संरक्षण गतिविधियां तेज होने के आसार दिख रहे हैं।
कभी दुर्गम पहाडि़यों से कल-कल बहती स्वर्णरेखा नदी आज बढ़ते शहरीकरण और लोगों की उदासीनता के कारण खतरे में है। प्रदूषण का पर्याय बनती जा रही इस नदी पर अगर आज ध्यान न दिया गया तो कल को इसे देख इंसानियत को शर्मिंदा होना पड़ेगा। सूखती धारा और जमें पानी की दुर्गंध आज से ही इस खतरे की और इशारा कर रही है। पूर्वी सिंहभूम के बड़े इलाके में फैली इस नदी की ऐसी हालत के पीछे सबसे बड़ा हाथ जमशेदपुर का है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अध्ययन को आधार माना जाए तो यह नदी जमशेदपुर से गुजरने के बाद इतनी प्रदूषित हो जाती है कि इसे धीमा जहर कहा जाए तो गलत न होगा। यानी जिस जमशेदपुर शहर के लोग आज भी नदियों को पूजते हैं, वहां स्वर्णरेखा की पवित्रता को तार-तार किया जा रहा है। रफ्तार के आधार पर देश की आठवीं नदी के रूप में पहचानी जाने वाली इस पठारी नदी की इस दुर्दशा के पीछे कारण कई हैं, लेकिन समाधान एक है..इच्छाशक्ति। फिर चाहे वह सरकार की हो, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हो या फिर हमारी..। नदी की ऐसी हालत के कारणों व इससे निपटने के उपायों की पड़ताल कर रहे हैं भादो माझी..
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जमशेदपुर : कल-कल करते हुए सबको शुद्ध और पवित्र करने वाली तथा प्यास बुझाते हुए भूमि को सींच कर अन्न-भंडार देने वाली स्वर्णरेखा नदी आज स्वयं प्रदूषित होकर शुद्धिकरण की बाट जोह रही है। राज्य सरकार केंद्र की राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना पर टकटकी लगाए बैठी है, इस हकीकत से मुंह मोड़े कि वक्त की रेत ज्यों-ज्यों फिसल रही है त्यों-त्यों अभागी स्वर्णरेखा का पानी जहर होता जा रहा है।
हकीकत के आईने में झलक रही स्वर्णरेखा की दुर्दशा देखने से सरकार को कोई सरोकार नहीं, तभी तो अभागी स्वर्णरेखा के तिल-तिल तड़पने का विलाप सुन कर भी सरकार सन्नाटे में है। नदी के तट जल भंडार से रिक्त होकर गंदगी के अतिक्रमण से अपनी बदहाली के आंसू बहाने को मजबूर हैं और इसका पानी लगातार जहर में तब्दील होता जा रहा है। सेंट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के सर्वेक्षण को आधार माना जाए तो पठारी इलाकों से होकर गुजरने वाली देश की इस सबसे तेज रफ्तार (12 बिलियन-एम3/वर्ष) नदी का पानी आज इस्तेमाल करने के लायक नहीं बचा।
दो राज्यों का 470 किलोमीटर लम्बा सफर तय करने वाली स्वर्णरेखा रांची से जब निकलती है तो हुंडरू जलप्रपात पहुंच खिलखिलाती-बलखाती बाल्यावस्था की याद दिलाती है, लेकिन जमशेदपुर पहुंचते-पहुंचते तरुणावस्था की ओर पैर रखती यह नदी आज अपने तटों को भी सुरक्षित नहीं कर पा रही है। एक और जहां गंदगी का साम्राज्य नदी पर दोमुहानी से भुइयांडीह तक व्याप्त है तो वहीं दूसरी ओर औद्योगिकीकरण का श्राप भी नदी के पानी को शापित करता दिखता है। इंाडियन सोसायटी आफ क्रोनोबायोलाजी के सदस्य प्रो. केके शर्मा के मुताबिक नदी का पानी गंदा होता जा रहा है, इससे इंसानों को तो अप्रत्यक्ष रूप से हानि पहुंचेगी ही, लेकिन मछलियों व जल जीवों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा।
जमशेदपुर के 11 सिवरेज को बर्दाश्त करने की मजबूरी :- राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना की रिपोर्ट के मुताबिक देश की आठवीं सबसे तेज बहाव वाली नदी होने का गौरव प्राप्त कर चुकी स्वर्णरेखा नदी इंडस्ट्रियल सिटी जमशेदपुर से गुजरने के दौरान सबसे ज्यादा प्रदूषित होती है। शहर में सिवरेज सिस्टम के ट्रीटमेंट (शुद्धिकरण) की व्यवस्था न होने के कारण 11 ऐसे नाले नदी में छोड़ दिये गये हैं जो सीधे तौर पर नदी में जहर घोल रहे हैं। ये सारे सिवरेज वैसे हैं जो विशुद्ध रूप से गंदे नाले हैं, और सीधे शौचालयों से होते हुए नदी पहुंचते हैं।
पाइपलाइन में 30 करोड़ की केंद्रीय योजना :- प्रदूषित स्वर्णरेखा के लिए जवाहरलाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन (जेएनएनयूआरएम) मिशन के तहत नदी को प्रदूषण मुक्त करने व इसके घाटों की सुरक्षा सुनिश्चित करने समेत सौंदर्यीकरण हेतु 30 करोड़ रुपये की योजना प्रस्तावित है। इस राशि से स्वर्णरेखा का सौंदर्यीकरण कार्य तो किया ही जाएगा, डिमना लेक को भी इस राशि का लाभ मिलेगा।
जमशेदपुर से बढ़ते ही बिगड़ जाता नदी का स्वाद : स्वर्णरेखा नदी का स्वाद (गुणवत्ता) जमशेदपुर का सफर तय करने के बाद बिगड़ता चला जाता है। आंकड़ें खुद इसकी गवाही देते हैं। सेंट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, भारत सरकार द्वारा उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक जमशेदपुर पहुंचने से पूर्व चांडिल में नदी की गुणवत्ता ठीक-ठाक रहती है। यहां केमिकल आक्सिजन डिमांड (सीओडी) 9.0 एमजी एक होता है, जो जमशेदपुर में 22.0 का आंकड़ा पार कर जाता है। बीओडी की स्थिति भी चंडिल में 0.5 होती है तो नगर आते-आते यह 1.3 हो जाती है। अलकलानिटी भी चांडिल में 56 होती है जो शहर में 142 तक पहुंच कर हार्ड हो जाती है।
37 का सितम :- स्वर्णरेखा नदी देश के उन 37 नदियों में शामिल है जिन्हें प्रदूषित नदी के रूप में चिह्नित किया गया है। राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) के तहत इन 37 नदियों के पानी की गुणवत्ता में सुधार के लिए प्रदूषण घटाने हेतु इन विशेष अभियान चलाया जा रहा है। जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत भी नदी संरक्षण गतिविधियां तेज होने के आसार दिख रहे हैं।
Friday, April 2, 2010
गुड फ्राइडे : प्रायश्चित और प्रार्थना को लौहनगरी तैयार
भादो माझी, जमशेदपुर : चालीस दिनों का लेंट गुड फ्राइडे के साथ समाप्त हो जाएगा। पिछले ऐश वेडनेसडे (जबसे लेंट शुरु हुआ) से मसीही समुदाय के लोग पवित्र महीने को प्रायश्चित माह के रूप में प्रार्थना-सभा कर बिता रहे थे, अब शुक्रवार को मातम का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन लौहनगरी समेत पूरे विश्व का ईसाई समुदाय मसीही के त्याग और बलिदान को याद करेगा। इसके लिए संत जोसेफ कैथेड्रल चर्च में विशेष प्रार्थना सभा की तैयारी चल रही है, वहीं इन्फैन्ट जीसस चर्च सोनारी में गुड फ्राइडे के दिन जमशेदपुर धर्मप्रांत के बिशप फेलिक्स टोप्पो प्रभु का संदेश देंगे। इस दिन वे सोनारी में मसीहियों के समक्ष 'लाडर््स पैशन एंड डेथ ' विषय पर आधारित प्रवचन में प्रभु यीशु मसीह के वचनों को श्रद्धालुओं के समक्ष रखेंगे। इस दौरान शहर के तमाम गिरजाघरों में क्रूस को चूम कर यीशु के त्याग व बलिदान को याद किया जाएगा।
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याद की जाएगी यीशु की पीड़ा
जमशेदपुर : ऐश वेडनेसडे के बाद से शुरु हुआ 'लेंट' गुड फ्राइडे के साथ समाप्त हो जाता है। गुड फ्राइडे के दिन मसीही समुदाय के लोग जिस सलीब (क्रास) पर ईसा मसीह को क्रूसीफाई किया गया था, उसे प्रतीक के रूप में आस्थावानों की श्रद्धा स्वरूप लकड़ी का एक तख्ता गिरजाघरों में रखा जाता है। ईसा अनुयायी एक-एक कर आकर उसे चूमते हैं। इसके बाद दोपहर से तीन बजे तक सर्विस की जाती है। सर्विस में ईसाई सिद्धांतों (चार गोस्पेल्स) में से किसी एक पठन किया जाता है। तत्पश्चात समारोह में प्रवचन, ध्यान और प्रार्थनाएं की जाती है। इसके बाद समारोह में प्रवचन, ध्यान और प्रार्थनाएं की जाती है। इस दौरान मसीही श्रद्धालु प्रभु यीशु द्वारा तीन घंटे तक क्रास पर भोगी गई पीड़ा को याद करते हैं। फिर आधी रात को सामान्य कम्यूनियन सर्विस होती है। कहीं-कहीं कालेज वस्त्र पहनकर मसीही यीशु की छवि लेकर मातम मनाते हुए एक चल समारोह करते हैं और प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार भी किया जाता है। चूंकि गुड फ्राइडे प्रायश्चित और प्रार्थना का दिन है, अत: इस दिन गिरजाघरों में घंटिया (बेल) नहीं बजाई जातीं।
good friday in jamshedpur
पुण्य शुक्रवार पर पाप परास्त
..प्रिय! अभी आप चाहे कैसी भी दशा या परिस्थिति में क्यों न हों, चाहे आपका परिवार या समाज आपको दोषी ठहराए, पुनरुत्थित यीशु आपको अपनी संतान बनाना चाहता है। वह आपको पूरी रीति से बचाना चाहता है, आपको मृत्यु के भय या अकेलेपन से स्वतंत्र करना चाहता है। आपके पास एक न समाप्त होने वाली आशा है..यीशु में, जिसने मृत्यु की घाटी को पार किया और मृत्यु पर विजय पाई। क्या आप उसके हाथों में अपने जीवन को सौंपेंगे? वह आपको मृत्यु के गहन अंधकार से छुड़ाएगा। वह आपको पूरी रीति से आपको सुरक्षित बचाए रखेगा और आपका उद्धार करेगा। आनेवाले संसार में भी, वह आपका स्वागत करेगा और आपको चूमेगा, अनंत प्रसन्नता देगा।
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भादो माझी, जमशेदपुर : शुक्रवार को न सिर्फ लौहनगरी बल्कि पूरे विश्व के ईसाई धर्मावलंबियों ने गुड फ्राइडे (पुण्य शुक्रवार) मनाया। मसीहियों के लिए क्षमा व त्याग का नाम है गुड फ्राइडे। आज के ही दिन यीशु मसीह दूसरों के पापों को मिटाने के लिए क्रूस पर चढ़ गए थे। इस दिन शहर भर के गिरजाघरों में यीशु के आदर एवं स्तुति में दिन भर उपवास करते हुए शोक सागर में डूब कर उनके दुख, मरण एवं यातना पर मनन-चिंतन और प्रार्थना किया गया। जमशेदपुर धर्मप्रांत के बिशप फेलिक्स टोप्पो ने इस मौके पर सुसमाचार बताते हुए संदेश दिया कि प्रभु यीशु मसीह सृष्टिकर्ता व मुक्तिदाता हैं। उनके पदचिन्ह क्षमा और प्रेम का संदेश देते हैं। उन्होंने कहा कि गुड फ्राइडे हर किसी के लिए गौरव व प्रायश्चित का दिवस है।
प्रभु की पीड़ा को किया याद : शहर के तमाम गिरजाघरों में पहुंचकर ईसाई समुदाय के लोगों ने प्रभु यीशु मसीह की पीड़ा को याद कर प्रायश्चित के लिए प्रार्थना की। मान्यताओं के मुताबिक तीन घंटे तक क्रूस पर टंगे होने के बाद काफी कष्टपूर्ण स्थिति में दोपहर तीन बजे प्रभु यीशु ने प्राण त्यागे थे, इसलिए अधिकांश गिरजाघरों में दोपहर तीन बजे ही गुड फ्राइडे के कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इस दौरान प्रभु के कष्टपूर्ण मौत को याद किया गया, और काले कपड़े पहन कर क्रूस को चूमा गया। बिष्टुपुर स्थित संत मेरीज चर्च से लेकर संत जोसेफ कैथेड्रल चर्च तक और टेल्को स्थित लुपिता चर्च समेत जीईएल चर्च सीतारामडेरा, जीईएल चर्च मानगो, संत रोबर्ट चर्च परसुडीह, संत बरनाबस चर्च शंकरपुर व कीताडीह चर्च में दोपहर के 11 बजे से ही गुड फाइडे के उपलक्ष्य में प्रार्थनाएं आरंभ कर दी गईं थीं।
सभी गिरजाघरों में थी विशेष तैयारियां :- गुड फ्राइडे के दिन तपती गर्मी को मद्देनजर रखते हुए कई गिरजाघरों में विशेष प्रबंध किये गये थे। श्रद्धालुओं के लिए छांव की व्यवस्था करने से लेकर पीने के पानी तक का भी प्रबंध था।
तपती धूप में सड़क पर निकले मसीही :- तपती धूप में मसीही भक्ति सागर में डूब कर सड़कों पर निकले और सांकेतिक रूप से क्रूस लेकर एक चल यात्रा निकाल यीशु का अंतिम संस्कार किया। इस दौरान मसीही काले वस्त्र धारण किए हुए थे।
तीन दिन बाद जी उठेंगे यीशु :- तीन दिन बाद, यानी रविवार को प्रभु यीशु मसीह जी उठेंगे। इसकी खुशी मसीही समुदाय में ईस्टर पर्व के रूप में मनाई जाएगी। शहर में भी इसकी व्यापक तैयारी की गई है।
..प्रिय! अभी आप चाहे कैसी भी दशा या परिस्थिति में क्यों न हों, चाहे आपका परिवार या समाज आपको दोषी ठहराए, पुनरुत्थित यीशु आपको अपनी संतान बनाना चाहता है। वह आपको पूरी रीति से बचाना चाहता है, आपको मृत्यु के भय या अकेलेपन से स्वतंत्र करना चाहता है। आपके पास एक न समाप्त होने वाली आशा है..यीशु में, जिसने मृत्यु की घाटी को पार किया और मृत्यु पर विजय पाई। क्या आप उसके हाथों में अपने जीवन को सौंपेंगे? वह आपको मृत्यु के गहन अंधकार से छुड़ाएगा। वह आपको पूरी रीति से आपको सुरक्षित बचाए रखेगा और आपका उद्धार करेगा। आनेवाले संसार में भी, वह आपका स्वागत करेगा और आपको चूमेगा, अनंत प्रसन्नता देगा।
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भादो माझी, जमशेदपुर : शुक्रवार को न सिर्फ लौहनगरी बल्कि पूरे विश्व के ईसाई धर्मावलंबियों ने गुड फ्राइडे (पुण्य शुक्रवार) मनाया। मसीहियों के लिए क्षमा व त्याग का नाम है गुड फ्राइडे। आज के ही दिन यीशु मसीह दूसरों के पापों को मिटाने के लिए क्रूस पर चढ़ गए थे। इस दिन शहर भर के गिरजाघरों में यीशु के आदर एवं स्तुति में दिन भर उपवास करते हुए शोक सागर में डूब कर उनके दुख, मरण एवं यातना पर मनन-चिंतन और प्रार्थना किया गया। जमशेदपुर धर्मप्रांत के बिशप फेलिक्स टोप्पो ने इस मौके पर सुसमाचार बताते हुए संदेश दिया कि प्रभु यीशु मसीह सृष्टिकर्ता व मुक्तिदाता हैं। उनके पदचिन्ह क्षमा और प्रेम का संदेश देते हैं। उन्होंने कहा कि गुड फ्राइडे हर किसी के लिए गौरव व प्रायश्चित का दिवस है।
प्रभु की पीड़ा को किया याद : शहर के तमाम गिरजाघरों में पहुंचकर ईसाई समुदाय के लोगों ने प्रभु यीशु मसीह की पीड़ा को याद कर प्रायश्चित के लिए प्रार्थना की। मान्यताओं के मुताबिक तीन घंटे तक क्रूस पर टंगे होने के बाद काफी कष्टपूर्ण स्थिति में दोपहर तीन बजे प्रभु यीशु ने प्राण त्यागे थे, इसलिए अधिकांश गिरजाघरों में दोपहर तीन बजे ही गुड फ्राइडे के कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इस दौरान प्रभु के कष्टपूर्ण मौत को याद किया गया, और काले कपड़े पहन कर क्रूस को चूमा गया। बिष्टुपुर स्थित संत मेरीज चर्च से लेकर संत जोसेफ कैथेड्रल चर्च तक और टेल्को स्थित लुपिता चर्च समेत जीईएल चर्च सीतारामडेरा, जीईएल चर्च मानगो, संत रोबर्ट चर्च परसुडीह, संत बरनाबस चर्च शंकरपुर व कीताडीह चर्च में दोपहर के 11 बजे से ही गुड फाइडे के उपलक्ष्य में प्रार्थनाएं आरंभ कर दी गईं थीं।
सभी गिरजाघरों में थी विशेष तैयारियां :- गुड फ्राइडे के दिन तपती गर्मी को मद्देनजर रखते हुए कई गिरजाघरों में विशेष प्रबंध किये गये थे। श्रद्धालुओं के लिए छांव की व्यवस्था करने से लेकर पीने के पानी तक का भी प्रबंध था।
तपती धूप में सड़क पर निकले मसीही :- तपती धूप में मसीही भक्ति सागर में डूब कर सड़कों पर निकले और सांकेतिक रूप से क्रूस लेकर एक चल यात्रा निकाल यीशु का अंतिम संस्कार किया। इस दौरान मसीही काले वस्त्र धारण किए हुए थे।
तीन दिन बाद जी उठेंगे यीशु :- तीन दिन बाद, यानी रविवार को प्रभु यीशु मसीह जी उठेंगे। इसकी खुशी मसीही समुदाय में ईस्टर पर्व के रूप में मनाई जाएगी। शहर में भी इसकी व्यापक तैयारी की गई है।
jamshedpur environment
एक्सएलआरआई में खुला कोपनहेगन का पिटारा
भादो माझी, जमशेदपुर : कोपनहेगन में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान जब पूरा विश्व पर्यावरण को संतुलित करने के मसले पर मंथन कर रहा था, तब शायद किसी ने सोचा नहीं होगा कि आगे चलकर विश्व का यह सर्वाधिक गंभीर मसला भी बिजनेस की श्रेणी में आ जाएगा।
जी हां, आज जलवायु परिवर्तन की समस्या को एक बिजनेस आप्शन के रूप में देखा जा रहा है। कम से कम शहर में स्थित विश्व स्तरीय बिजनेस स्कूल- जेवियर लेबर रिलेशंस इंस्टीट्यूट (एक्सएलआरआई-जमशेदपुर) ने तो इस ओर कदम बढ़ा ही दिए हैं। खास कर उस सम्मेलन के बाद जिसमें जनरल कार्बन के चीफ एक्जीक्यूटिव आफिसर (सीईओ) डा. रामबाबू द्वारा इस क्षेत्र में बिजनेस और भविष्य की संभावनाओं के बारे में बताया गया। एक्सएलआरआई के एक दिवसीय दौरे पर लौहनगरी पहुंचे डा. रामबाबू ने मैनेजमेंट के छात्रों को संस्थान में आयोजित 'सीईओ फोरम' (कार्यशाला) में बताया कि कोपनहेगन में पिछले वर्ष हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन ने पूरे विश्व को पर्यावरण के प्रति सजग कर दिया है। अब विश्व का हर देश जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए क्लाइमेट बैलेंस मैनेजमेंट सिस्टम लागू करने हेतु बड़ा बजट खर्च करने को तैयार है। ऐसे में इस क्षेत्र (क्लाइमेट मैनेजमेंट सर्विस) में बतौर प्रबंधक काम करने के अवसर तेजी से विकसित हो रहे हैं। राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिक शोध संस्थान के शोधकर्ता रह चुके डा. राम बाबू ने अपने शोध का आधार बताते हुए कहा कि विश्व में फिलहाल आईटी सेक्टर पर विश्व भर के देश जितना बजट खर्च कर रहे हैं, 2020 तक उतना ही बजट जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए इसे संतुलित करने के मैकेनिज्म और मैनेजमेंट सिस्टम पर खर्च करेंगे। उन्होंने छात्रों को जलवायु परिवर्तन की दिशा में अपने आप को एक सफल प्रबंधक के रूप में विकसित करने की बात कही।
कार्बन उत्सर्जन संतुलन का बढ़ा बाजार :- कार्बन उत्सर्जन संतुलित करने का धंधा इन दिनों खासा चंगा चल रहा है। डा. राम बाबू के मुताबिक कार्बन उत्सर्जन का अकेले भारत में 50 बिलियन डालर का बिजनेस है। कई हैं अवसर :- पर्यावरण संतुलन के लिहाज से कई ऐसे अवसर हैं जो बिजनेस के रूप में स्थापित हो सकते हैं। मसलन देश में पर्यावरण के लिए सुरक्षित मानक सुनिश्चित करने वाला संस्थान स्थापित कर, पर्यावरण संरक्षण का मैकानिज्म डेवलपिंग कंपनी स्थापित कर व इको लेवलिंग प्रोडक्ट बनाने की कंपनी स्थापित कर।
भादो माझी, जमशेदपुर : कोपनहेगन में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान जब पूरा विश्व पर्यावरण को संतुलित करने के मसले पर मंथन कर रहा था, तब शायद किसी ने सोचा नहीं होगा कि आगे चलकर विश्व का यह सर्वाधिक गंभीर मसला भी बिजनेस की श्रेणी में आ जाएगा।
जी हां, आज जलवायु परिवर्तन की समस्या को एक बिजनेस आप्शन के रूप में देखा जा रहा है। कम से कम शहर में स्थित विश्व स्तरीय बिजनेस स्कूल- जेवियर लेबर रिलेशंस इंस्टीट्यूट (एक्सएलआरआई-जमशेदपुर) ने तो इस ओर कदम बढ़ा ही दिए हैं। खास कर उस सम्मेलन के बाद जिसमें जनरल कार्बन के चीफ एक्जीक्यूटिव आफिसर (सीईओ) डा. रामबाबू द्वारा इस क्षेत्र में बिजनेस और भविष्य की संभावनाओं के बारे में बताया गया। एक्सएलआरआई के एक दिवसीय दौरे पर लौहनगरी पहुंचे डा. रामबाबू ने मैनेजमेंट के छात्रों को संस्थान में आयोजित 'सीईओ फोरम' (कार्यशाला) में बताया कि कोपनहेगन में पिछले वर्ष हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन ने पूरे विश्व को पर्यावरण के प्रति सजग कर दिया है। अब विश्व का हर देश जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए क्लाइमेट बैलेंस मैनेजमेंट सिस्टम लागू करने हेतु बड़ा बजट खर्च करने को तैयार है। ऐसे में इस क्षेत्र (क्लाइमेट मैनेजमेंट सर्विस) में बतौर प्रबंधक काम करने के अवसर तेजी से विकसित हो रहे हैं। राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिक शोध संस्थान के शोधकर्ता रह चुके डा. राम बाबू ने अपने शोध का आधार बताते हुए कहा कि विश्व में फिलहाल आईटी सेक्टर पर विश्व भर के देश जितना बजट खर्च कर रहे हैं, 2020 तक उतना ही बजट जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए इसे संतुलित करने के मैकेनिज्म और मैनेजमेंट सिस्टम पर खर्च करेंगे। उन्होंने छात्रों को जलवायु परिवर्तन की दिशा में अपने आप को एक सफल प्रबंधक के रूप में विकसित करने की बात कही।
कार्बन उत्सर्जन संतुलन का बढ़ा बाजार :- कार्बन उत्सर्जन संतुलित करने का धंधा इन दिनों खासा चंगा चल रहा है। डा. राम बाबू के मुताबिक कार्बन उत्सर्जन का अकेले भारत में 50 बिलियन डालर का बिजनेस है। कई हैं अवसर :- पर्यावरण संतुलन के लिहाज से कई ऐसे अवसर हैं जो बिजनेस के रूप में स्थापित हो सकते हैं। मसलन देश में पर्यावरण के लिए सुरक्षित मानक सुनिश्चित करने वाला संस्थान स्थापित कर, पर्यावरण संरक्षण का मैकानिज्म डेवलपिंग कंपनी स्थापित कर व इको लेवलिंग प्रोडक्ट बनाने की कंपनी स्थापित कर।
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