Friday, April 23, 2010

jamshedpur subarnarekha rever pollution

अभागी स्वर्णरेखा

कभी दुर्गम पहाडि़यों से कल-कल बहती स्वर्णरेखा नदी आज बढ़ते शहरीकरण और लोगों की उदासीनता के कारण खतरे में है। प्रदूषण का पर्याय बनती जा रही इस नदी पर अगर आज ध्यान न दिया गया तो कल को इसे देख इंसानियत को शर्मिंदा होना पड़ेगा। सूखती धारा और जमें पानी की दुर्गंध आज से ही इस खतरे की और इशारा कर रही है। पूर्वी सिंहभूम के बड़े इलाके में फैली इस नदी की ऐसी हालत के पीछे सबसे बड़ा हाथ जमशेदपुर का है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अध्ययन को आधार माना जाए तो यह नदी जमशेदपुर से गुजरने के बाद इतनी प्रदूषित हो जाती है कि इसे धीमा जहर कहा जाए तो गलत न होगा। यानी जिस जमशेदपुर शहर के लोग आज भी नदियों को पूजते हैं, वहां स्वर्णरेखा की पवित्रता को तार-तार किया जा रहा है। रफ्तार के आधार पर देश की आठवीं नदी के रूप में पहचानी जाने वाली इस पठारी नदी की इस दुर्दशा के पीछे कारण कई हैं, लेकिन समाधान एक है..इच्छाशक्ति। फिर चाहे वह सरकार की हो, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हो या फिर हमारी..। नदी की ऐसी हालत के कारणों व इससे निपटने के उपायों की पड़ताल कर रहे हैं भादो माझी..

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 जमशेदपुर : कल-कल करते हुए सबको शुद्ध और पवित्र करने वाली तथा प्यास बुझाते हुए भूमि को सींच कर अन्न-भंडार देने वाली स्वर्णरेखा नदी आज स्वयं प्रदूषित होकर शुद्धिकरण की बाट जोह रही है। राज्य सरकार केंद्र की राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना पर टकटकी लगाए बैठी है, इस हकीकत से मुंह मोड़े कि वक्त की रेत ज्यों-ज्यों फिसल रही है त्यों-त्यों अभागी स्वर्णरेखा का पानी जहर होता जा रहा है।
हकीकत के आईने में झलक रही स्वर्णरेखा की दुर्दशा देखने से सरकार को कोई सरोकार नहीं, तभी तो अभागी स्वर्णरेखा के तिल-तिल तड़पने का विलाप सुन कर भी सरकार सन्नाटे में है। नदी के तट जल भंडार से रिक्त होकर गंदगी के अतिक्रमण से अपनी बदहाली के आंसू बहाने को मजबूर हैं और इसका पानी लगातार जहर में तब्दील होता जा रहा है।  सेंट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के सर्वेक्षण को आधार माना जाए तो पठारी इलाकों से होकर गुजरने वाली देश की इस सबसे तेज रफ्तार (12 बिलियन-एम3/वर्ष) नदी का पानी आज इस्तेमाल करने के लायक नहीं बचा।
दो राज्यों का 470 किलोमीटर लम्बा सफर तय करने वाली स्वर्णरेखा रांची से जब निकलती है तो हुंडरू जलप्रपात पहुंच खिलखिलाती-बलखाती बाल्यावस्था की याद दिलाती है, लेकिन जमशेदपुर पहुंचते-पहुंचते तरुणावस्था की ओर पैर रखती यह नदी आज अपने तटों को भी सुरक्षित नहीं कर पा रही है। एक और जहां गंदगी का साम्राज्य नदी पर दोमुहानी से भुइयांडीह तक व्याप्त है तो वहीं दूसरी ओर औद्योगिकीकरण का श्राप भी नदी के पानी को शापित करता दिखता है। इंाडियन सोसायटी आफ क्रोनोबायोलाजी के सदस्य प्रो. केके शर्मा के मुताबिक नदी का पानी गंदा होता जा रहा है, इससे इंसानों को तो अप्रत्यक्ष रूप से हानि पहुंचेगी ही, लेकिन मछलियों व जल जीवों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। 
जमशेदपुर के 11 सिवरेज को बर्दाश्त करने की मजबूरी :- राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना की रिपोर्ट के मुताबिक देश की आठवीं सबसे तेज बहाव वाली नदी होने का गौरव प्राप्त कर चुकी स्वर्णरेखा नदी इंडस्ट्रियल सिटी जमशेदपुर से गुजरने के दौरान सबसे ज्यादा प्रदूषित होती है। शहर में  सिवरेज सिस्टम के ट्रीटमेंट (शुद्धिकरण) की व्यवस्था न होने के कारण 11 ऐसे नाले नदी में छोड़ दिये गये हैं जो सीधे तौर पर नदी में जहर घोल रहे हैं। ये सारे सिवरेज वैसे हैं जो विशुद्ध रूप से गंदे नाले हैं, और सीधे शौचालयों से होते हुए नदी पहुंचते हैं।
पाइपलाइन में 30 करोड़ की केंद्रीय योजना :-  प्रदूषित स्वर्णरेखा के लिए जवाहरलाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन (जेएनएनयूआरएम) मिशन के तहत नदी को प्रदूषण मुक्त करने व इसके घाटों की सुरक्षा सुनिश्चित करने समेत सौंदर्यीकरण हेतु 30 करोड़ रुपये की योजना प्रस्तावित है। इस राशि से स्वर्णरेखा का सौंदर्यीकरण कार्य तो किया ही जाएगा, डिमना लेक को भी इस राशि का लाभ मिलेगा।
जमशेदपुर से बढ़ते ही बिगड़ जाता नदी का स्वाद : स्वर्णरेखा नदी का स्वाद (गुणवत्ता) जमशेदपुर का सफर तय करने के बाद बिगड़ता चला जाता है। आंकड़ें खुद इसकी गवाही देते हैं। सेंट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, भारत सरकार द्वारा उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक जमशेदपुर पहुंचने से पूर्व चांडिल में नदी की गुणवत्ता ठीक-ठाक रहती है। यहां केमिकल आक्सिजन डिमांड (सीओडी) 9.0 एमजी एक होता है, जो जमशेदपुर में 22.0 का आंकड़ा पार कर जाता है। बीओडी की स्थिति भी चंडिल में 0.5 होती है तो नगर आते-आते यह 1.3 हो जाती है। अलकलानिटी भी चांडिल में 56 होती है जो शहर में 142 तक पहुंच कर हार्ड हो जाती है।
37 का सितम :- स्वर्णरेखा नदी देश के उन 37 नदियों में शामिल है जिन्हें प्रदूषित नदी के रूप में चिह्नित किया गया है। राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) के तहत इन 37 नदियों के पानी की गुणवत्ता में सुधार के लिए प्रदूषण घटाने हेतु इन विशेष अभियान चलाया जा रहा है। जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत भी नदी संरक्षण गतिविधियां तेज होने के आसार दिख रहे हैं।

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