Sunday, December 4, 2011

"दूसरे भारत" में बसती है मंजू की दुनिया


जादूगोड़ा स्थित डुंगरीडीह गांव में मंजू देवी 
भादो माझी, जादूगोड़ा 
.............................................................................
गोद में मासूम बच्चा। इस बात से अनजान कि उसकी मां भूखे रह कर उसे दूध पिला रही है। बच्चे की आंखे बिल्कुल मासूम, लेकिन न जाने क्यों फिर भी उसकी ये मासूम आंखे सवाल करती सी नजर आती हैं? सवाल यह कि भूखे पेट कबतक उसकी मां अपने खून को दूध का शक्ल देकर पिलाती रहेगी...? सवाल यह कि कब तक उसके पिता दस-दस रुपए के लिए अपने खून को पसीने की कीमत पर बेचते रहेंगे...? सवाल यह कि क्या यही उनकी नियति है...? 
मासूम आंखों के इन सवालों का सटीक जवाब तो किसी के पास नहीं, लेकिन इन सवालों के जवाब में एक सवाल जरूर है। सवाल यह कि कब तक ऐसे हालात रहेंगे? 11 साल हो गए। ...और कितना वक्त चाहिए झारखंड को? क्या झारखंड के गांवों में जन्म लेने वाले बच्चों की आंखे यही सवाल दोहराती रहेंगी?
झारखंड के इस बेबसी की जीवंत तस्वीर आज भी मेट्रो-लाइफ स्टइल वाले शहरों से ज्यादा दूर नहीं। जिस मजबूर मासूम का जिक्र हम कर रहे हैं उसकी मजबूरी की झलक भी देश के प्रथम नियोजित (प्लान्ड) शहरों में शामिल जमशेदपुर शहर से महज 14 किमी दूर भाटिन के डुंगरीडीह (जादूगोड़ा) गांव में ही दिखी। यहां मंजू देवी ने अपने पति व छोटे-छोटे बच्चों संग दुनिया बसाई है। उसकी इस दुनिया को 'दूसरे' भारत की तस्वीर कहा जा सकता है। सूखी झाडिय़ों से बनी झोपड़ी में 13 डिग्री तक ठंडी रात ठिठुर कर गुजारने वाले इस परिवार की हकीकत झारखंड के 11 साल के सफर को खुद बयां करती है। पेट की चिंता ने कुछ समय पहले इस परिवार को दुमका से जिलाबदर कर पूर्वी सिंहभूम पहुंचा दिया। दुमका में पहले खेती-बाड़ी से काम चल जाया करता था, लेकिन सूखे व सिंचाई की व्यवस्था न होने के कारण तंगहाली का आलम इस कदर बिगड़ा कि यहां (पूर्वी सिंहभूम) में खजूर के पेड़ से रस जुटा कर बेचने की नौबत आ गई, अब तो इसी से पेट पल जाता है। देसी भाषा में खजूर के इस रस को ताड़ी कहते हैं। ठंड का मौसम है सो किसी तरह बस 10-20 रुपए रोजाना की कमाई हो जाती है। बस इतने में रोटी का इंतजाम करना होता है। महंगाई के इस जमाने में 20 रुपए में एक किलो आटा मुश्किल से मिल पाता है, ऐसे में इतनी ही कमाई में काम चलाना होता है। गर्मी में तो 60-70 रुपए कमाई हो जाती है, लेकिन ठंड में एक-एक दिन तो भूखे रहने की स्थिति आ जाती है।
सूखी झाडिय़ों से बनाए घर में रात गुजरती है। मंजू कहती हैं-''पति अमरूद चौधरी ताड़ी से हमारा पेट पालते हैं। किसी-किसी दिन रोटी नसीब नहीं हो पाती तो ताड़ी पीकर ही सो जाया करते हैं। क्या करें, पढ़े लिखे हैं नहीं, करें भी तो क्या?" सरकारी सुविधाओं के बारे पूछे जाने पर मंजू कहती हैं-''वोट वाला कार्ड तो है बाबू, लेकिन ब्लॉक के बड़े बाबू कहते हैं कि हम दुमका वाले हैं इसलिए इहां हमारा लालकार्ड नहीं बनेगा। मुख्रिया को बोले तो वो हजार रुपया मांगते हैं, बोलते हैं रुपया दो तो हम तुम्हारे अर्जी पर अंगूठा का छाप लगा देंगे। अब हम हजार रुपया कहां से लाएं। खाने का तो ठेकान नहीं....?
मंजू देवी की इस दुनिया में दुमका से पलायन करने की मजबूरी दिखती है, सूबे में पेट पालने के अवसरों की अनुपलब्धता भी दिखती है तो वहीं सरकारी व्यवस्था में पड़ा छेद भी दिखता है। कहा जा सकता है कि मंजू देवी की दुनिया विकासशील भारत से बिल्कुल जुदा है, और उनकी दुनिया अलग भारत में बसती है। उस भारत में जिसमें अमरों का इंडिया अलग है और गरीबों का भारत अलग...। मंजू की दुनिया उसी दूसरे भारत में बसती है....।

Wednesday, November 2, 2011

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Sunday, October 16, 2011

Bhado Majhi


Bhado Majhi


jamshedpur good friday

पुण्य शुक्रवार पर पाप परास्त

..प्रिय! अभी आप चाहे कैसी भी दशा या परिस्थिति में क्यों न हों, चाहे आपका परिवार या समाज आपको दोषी ठहराए, पुनरुत्थित यीशु आपको अपनी संतान बनाना चाहता है। वह आपको पूरी रीति से बचाना चाहता है, आपको मृत्यु के भय या अकेलेपन से स्वतंत्र करना चाहता है। आपके पास एक न समाप्त होने वाली आशा है..यीशु में, जिसने मृत्यु की घाटी को पार किया और मृत्यु पर विजय पाई। क्या आप उसके हाथों में अपने जीवन को सौंपेंगे? वह आपको मृत्यु के गहन अंधकार से छुड़ाएगा। वह आपको पूरी रीति से आपको सुरक्षित बचाए रखेगा और आपका उद्धार करेगा। आनेवाले संसार में भी, वह आपका स्वागत करेगा और आपको चूमेगा, अनंत प्रसन्नता देगा।
-----
भादो माझी, जमशेदपुर : शुक्रवार को न सिर्फ लौहनगरी बल्कि पूरे विश्व के ईसाई धर्मावलंबियों ने गुड फ्राइडे (पुण्य शुक्रवार) मनाया। मसीहियों के लिए क्षमा व त्याग का नाम है गुड फ्राइडे। आज के ही दिन यीशु मसीह दूसरों के पापों को मिटाने के लिए क्रूस पर चढ़ गए थे। इस दिन शहर भर के गिरजाघरों में यीशु के आदर एवं स्तुति में दिन भर उपवास करते हुए शोक सागर में डूब कर उनके दुख, मरण एवं यातना पर मनन-चिंतन और प्रार्थना किया गया। जमशेदपुर धर्मप्रांत के बिशप फेलिक्स टोप्पो ने इस मौके पर सुसमाचार बताते हुए संदेश दिया कि प्रभु यीशु मसीह सृष्टिकर्ता व मुक्तिदाता हैं। उनके पदचिन्ह क्षमा और प्रेम का संदेश देते हैं। उन्होंने कहा कि गुड फ्राइडे हर किसी के लिए  गौरव व प्रायश्चित का दिवस है।
प्रभु की पीड़ा को किया याद : शहर के तमाम गिरजाघरों में पहुंचकर ईसाई समुदाय के लोगों ने प्रभु यीशु मसीह की पीड़ा को याद कर प्रायश्चित के लिए प्रार्थना की। मान्यताओं के मुताबिक तीन घंटे तक क्रूस पर टंगे होने के बाद काफी कष्टपूर्ण स्थिति में दोपहर तीन बजे प्रभु यीशु ने प्राण त्यागे थे, इसलिए अधिकांश गिरजाघरों में दोपहर तीन बजे ही गुड फ्राइडे के कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इस दौरान प्रभु के कष्टपूर्ण मौत को याद किया गया, और काले कपड़े पहन कर क्रूस को चूमा गया। बिष्टुपुर स्थित संत मेरीज चर्च से लेकर संत जोसेफ कैथेड्रल चर्च तक और टेल्को स्थित लुपिता चर्च समेत जीईएल चर्च सीतारामडेरा, जीईएल चर्च मानगो, संत रोबर्ट चर्च परसुडीह, संत बरनाबस चर्च शंकरपुर व कीताडीह चर्च  में दोपहर के 11 बजे से ही गुड फाइडे के उपलक्ष्य में प्रार्थनाएं आरंभ कर दी गईं थीं।
सभी गिरजाघरों में थी विशेष तैयारियां :- गुड फ्राइडे के दिन तपती गर्मी को मद्देनजर रखते हुए कई गिरजाघरों में विशेष प्रबंध किये गये थे। श्रद्धालुओं के लिए छांव की व्यवस्था करने से लेकर पीने के पानी तक का भी प्रबंध था।
तपती धूप में सड़क पर निकले मसीही :- तपती धूप में मसीही भक्ति सागर में डूब कर सड़कों पर निकले और सांकेतिक रूप से क्रूस लेकर एक चल यात्रा निकाल यीशु का अंतिम संस्कार किया। इस दौरान मसीही काले वस्त्र धारण किए हुए थे।
तीन दिन बाद जी उठेंगे यीशु :- तीन दिन बाद, यानी रविवार को प्रभु यीशु मसीह जी उठेंगे। इसकी खुशी मसीही समुदाय में ईस्टर पर्व के रूप में मनाई जाएगी। शहर में भी इसकी व्यापक तैयारी की गई है।

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Friday, October 14, 2011

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Saturday, October 8, 2011

दूरदर्शन के स्पेक्ट्रम पर भी चलेगा इंटरनेट

भादो माझी, जमशेदपुर दूरदर्शन के स्पेक्ट्रम पर भी चल सकता है इंटरनेट। जी हां, सुनने में भले यह तकनीक अजीब लगे, लेकिन जमशेदपुर शहर के रणवीर चंद्रा तिवारी ने यह तकनीक विकसित कर ली है। वाइ-फाइ की तर्ज पर इस तकनीक से दूरदर्शन प्रसारित करने वाले स्पेक्ट्रम से ही गांव-गांव में इंटरनेट चलाया जा सकता है। रेडमंड-वाशिंगटन स्थित माइक्रोसॉफ्ट हेटक्वार्टर में रिसर्चर काम कर रहे शहर के इस युवा ने वर्षों रिसर्च करने के बाद इस तकनीक को विकसित किया है, जिसे अब अमेरिका के फेडरल कम्यूनिकेशन कमीशन (एफसीसी) ने मान्यता भी दे दी है। रणवीर की रिसर्च पर आधारित तकनीक को मान्यता देने के उपरांत अब अमेरिका में टेलीविजन चैनल्स प्रसारित करने वाले स्पेक्ट्रम पर इंटरनेट सर्विस दे दी गई है। यानी टीवी के लिए जिस स्पेक्ट्रम पर ब्रोडकास्टिंग होती है उसी स्पेक्ट्रम पर इंटरनेट डेटाबेस भी उपलब्ध कराया जा रहा है। चंद्रा अब भारत में इस तकनीक को लांच करने की तैयारी में है। क्या है तकनीक : रणवीर चंद्रा ने इंटरनेट के वाइ-फाइ सिस्टम की तर्ज पर एक नया इंटरनेट डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम तैयार किया है, जिसकी मदद से पुराने टेलीविजन चैनल, मसलन दूरदर्शन उपलब्ध कराने वाले स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल कर वायरलेस इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराया जा सकता है। सरल भाषा में कहा जाए तो जैसे आपके ऑफिस या कॉलेज में अगर वाइ-फाइ सिस्टम लगाया गया है तो आपका लैपटॉप बिना किसी इंटरनेट कनेक्शन (डेटा कार्ड अथवा ब्राडबैैंड कनेक्शन) के ही इंटरनेट ऑपरेट करने की सुविधा देता है, बिल्कुल वैसी ही तकनीक रणवीर ने विकसित की है जो वाइ-फाइ से ज्यादा रेंज पर बिना तार व बिना डेटाकार्ड के आपके लैपटॉप पर इंटरनेट डेटा उपलब्ध कराएगी। वाइ-फाइ की तर्ज पर काम करने वाली यह तकनीक टीवी स्पेक्ट्रम पर चलेगी। टीवी स्पेक्ट्रम से क्या लेना-देना :- दरअसल वर्षों पहले जब दूरदर्शन शुरू किया गया था तब इसे प्रसारित करने वाले स्पेक्ट्रम पर सिर्फ एक ही बैैंड (दूरदर्शन) उपलब्ध कराया गया, यानी दूरदर्शन का सिग्नल भेजने वाले स्पेक्ट्रम का सिर्फ एक बैैंड (चैनल) व्यस्त हुआ। बाकी चैनल खाली रहे, जिसे तकनीकी भाषा में व्हाइट स्पेस कहा जाता है। दूरदर्शन उपलब्ध कराने वाले उस पुराने अल्ट्रा हाइ फ्रिक्वेंसी (यूएचएफ) एनालोग टीवी के बाकी स्पेक्ट्रम (व्हाइट स्पेस) जो खाली रहे, उनका उपयोग अब रणवीर इंटरनेट सिग्नल्स (डेटाबेस) भेजने के लिए करने की तकनीकी विकसित कर चुके हैैं। क्या होगा लाभ :- रणवीर की यह खोज, जिसे ‘व्हाइट-फाइ’ कहा जा रहा है, उससे उन सुदूर गांवों तक वायरलेस इंटरनेट सुविधा पहुंच जाएगी जहां दूरदर्शन आता है। रणवीर कहते हैैं-‘मैंने इस कंप्यूटर नेटवर्क डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम पर इसी लक्ष्य के साथ काम किया कि इससे गांव-गांव के लोगों तक इंटरनेट की सुविधा पहुंच पाएगी।’ अमेरिका एफसीसी ने दी मान्यता :- रणवीर की इस तकनीक को अमेरिका के फेडरल कम्यूनिकेशन कमीशन (एफसीसी) ने मान्यता दे दी है। माइक्रोसोफ्ट के रेडमंड वाशिंगटन स्थित रिसर्च लैब का दौरा कर एफसीसी के चेयरमैन जूलियस जेनाचोवस्की ने इस तकनीक को हरी झंडी दी। इसके बाद गूगल, माइक्रोसोफ्ट समेत कई बड़ी कंपनियों की अपील पर अमेरिकी में स्पेक्ट्रम व्हाइट-स्पेस (अनयूज्ड टीवी स्पेक्ट्रम) को इंटरनेट के लिए उपयोग करने का रूल पास हुआ। एफसीसी ने रणवीर की इस संचार क्रांति को 21 सेंचुरी रूरल अमेरिकी ब्राडबैैंड का नाम दिया है। भारत से रणवीर को है उम्मीदें :-दुर्गा पूजा के मौके पर जमशेदपुर के मानगो डिमना रोड स्थित ग्रीनअर्थ कॉलोनी में अपने माता-पिता से मिलने पहुंचे रणवीर कहते हैैं-‘अमेरिका ने इस तकनीक को ग्रामीण इलाकों के विकास के लिए शुरू कर दिया है, उम्मीद है कि भारत भी इस तकनीक को अपनाएगा।’ पिछले दिनों भारत सरकार के आइटी विभाग के सचिवों ने भी माइक्रोसॉफ्ट के रिसर्च विंग का दौरा कर इस तकनीकी के ताजा अपडेट लिए थे, लेकिन रणवीर कहते हैैं कि तकनीक को समझने के बाद ही भारत सरकार इस मामले में आगे बढ़ सकती है। बिहार के मुख्यमंत्री ने दिखाई दिलचस्पी :- रणवीर चंद्रा की इस ‘व्हाइट-फाइ’ तकनीक से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी खासे प्रभावित हैैं। उन्होंने रणवीर चंद्रा की इस तकनीक के संबंध में पूर्ण जानकारी लेने के लिए विभागीय सचिवों का दल अमेरिका भेजने के निर्देश भी दे दिए हैैं। अगर सचिवों ने माइक्रोसॉफ्ट का दौरा कर सकारात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत किया तो संभव है कि बिहार से इस बाबत शुरूआत हो जाए। इसके लिए रणवीर लगातार नीतीश कुमार (मुख्यमंत्री) संग पत्राचार (ई-मेल पर) कर रहे हैैं। रणवीर ने झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा से भी इस बाबत संपर्क करने की रणनीति बनाई है।

Wednesday, August 17, 2011

जमशेदपुर - टीवी पर मार्मिक स्टोरी में नेताजी की मौजा ही मौजा



भादो माझी, जमशेदपुरः गुरुवार की एक औसत सुबह! रिमोट को सारथी बना टीवी पर कुछ सार्थक ढूंढ़ रहा था। पर ज्यादातर टीवी कायक्रम गुरुवार की सुबह से भी ज्यादा औसत थीं। धार्मिक चैनलों पर कुछ बाबा महिलाओं को शांति और संयम का पाठ पढ़ा रहे थे। नेशनल न्यूज चैनल वाले बता रहे थे कि कैसे एक बाबा ने संयम का पाठ पढऩे आई शिष्या को एक्सट्रा क्लास देने की कोशिश की। वहीं मनोरंजन चैनल्स पर सास-बहुएं एक-दूसरे को नीचा दिखाने के ऊंचे काम में लगी हैं, दूसरों का खून पी अपना हीमोग्लोबीन बढ़ा रही हैं। कल्पना के कैनवस पर हर क्षण षड्यंत्रों के दृश्य उकेर रही हैं। कभी-कभी हैरानी होती है कि धारावाहिकों में जिन परिवारों की कहानी देख हम मनोरंजन करते हैं, खुद उन परिवारों में कितना तनाव है! आखिर क्या वजह है कि दूसरे का तनाव हमें आनंद देता है? किसी का झगड़ा देख हम एंटरटेन होते हैं? क्या हम इतना गिर गए हैं...हमारे पास कुछ और काम नहीं बचा...इससे पहले कि किसी महान नतीजे पर पहुंचता, सोचा पॉकेट में चैनल आईडी ढूंसे वीडियो कैमरा लेकर कालिया चाय दुकान (डीसी ऑफिस के सामने) से जुुबिली लेक तक सड़कों पर तूफानी सैर करने वाले लोकल न्यूज वालों का करतब ही देख लिया जाए। करतब कमाल का था। लोकल टीवी पर न्यूज चल रही थी, न्यूज रीडर लाउड लिपिस्टिक पोते होंठ पहले हिला रही थे बोल बाद में रही थी। शायद टेक्निकल फॉल्ट था। बहरहाल शहर का मिजाज जानने की चस्की चढ़ी, सो टीवी वाली मैडम के होंठों को इग्नोर कर कंटेट पर ध्यान दिया। टीवी वाली मैडम ने चेहरे में हल्की मुस्कान लिए एक ऐसे मार्मिक स्टोरी दे मारी कि हमारी मैडम च.च..च.. करने लगी। दरअसल सीन मैरीन ड्राइव और रामजनमनगर का आ रहा था। पुलिस वाले विलेन और बस्ती वाले मिठुन चक्रवर्ती ब्रांड हिंदी फिल्म के गरीब गुरबा लग रहे थे। सीन ड्रामेटिक था, लेकिन इमोशनल ज्यादा लग रहा था। हमारी मैडम जी बंध गई, सो हमरा भी इस न्यूज में इंटरेस्ट दिखाना कंपलसरी था। सो लोकल न्यूज चैनल वालों की पेशकश पर नजरें टिक गईं। अतिक्रमण हटाया जा रहा था, सो लोग रो रहे थे, बिलख रहे थे। घर उजड़ रहे थे। यह सब देख च..च..च.. कंटिन्यू था। समझाने का कोई फायदा नहीं हुआ कि जमीन अवैध है तो आज नहीं तो कल हटना ही था। तपाक से सवाल दागती कि हटाना था तो बसाने समय क्यों नहीं रोका...? सवाल में दम था, सो हमारा तेवर बेदम हो गया। बहरहाल लोकल न्यूज पर इमोशनल सीन जारी था। इतने में इंट्री हुई एक शख्स की। साथ में थे उनके झंडरबरदर। न्यूज चैनल पर साहब को इंट्रोडक्शन जनप्रतिनिधि के रूप में की गई। जनाब आज रामजनमनगर में न्यूज चैनलों की बाढ़ देख जोश के समंदर में गोते पर गोते लगा रहे थे। पहले तो घर नहीं टूटने देंगे बोले, चैनल आइडी जब-जब उनकी और दिखता नेताजी बाइट (बयान) देने के लिए कॉलर टाइट कर देते। मौका मिला तो दहाड़ पड़े। प्रशासन ठीक नहीं कर रही...। हम ऐसा नहीं होने देंगे...। नापी गलत हुई है...। प्रशासन गलत कर रही है...। आदि...आदि। लेकिन नेताजी की आज चली नहीं। नारेबाजी करते विलेन बनी प्रशासन के आगे-पीछे होते रहे। फिजिकल प्रेजेंस जरूरी थी, आखिर अगली बार का सवाल जो था। नेताजी ने इतने समय में जितनी बार आग उगला उतनी बार उनके चेहरे पर वीरता के भाव दिखे। लेकिन उजड़ी जनता को आज फुर्सत न थी अपने गम से। पहले तो नेताजी पर उम्मीद जताई, लेकिन हांकता व फांकता देख नेताजी को देख खुद भी बगले झांकने लगे। नेताजी लोकल लीडर हैैं, लेकिन आज सिर्फ टीवी वाले उनके वोटर लग रहे थे। टीवी वालों को छोड़ कोई पूछ नहीं रहा था। सिर्फ वही क्यों, फ्लैशबैक पर टीवी में एक और चेहरा नहीं टूटने देंगे मकान के दावे करता दिखाया जा रहा था। साहब सरकार की पार्टी के हैैं। एक बार सत्ता की धाक दिखाई भी, बस्ती को बचाया भी। लेकिन चुनाव खत्म और साहब के दर्शन दुर्लभ। इन चैनल वालों की याददाश्त भी बड़ी जालिम होती है। चुनाव के पहले की बात अब तक याद रखे हुए हैैं। भई चुनाव खत्म अब तो बख्श दो नेताजी को। बेचारे हार भी गए हैैं। नहीं आए तो नहीं आए, आखिर लोकल लीडर आए तो थे, क्या हो गया। घर टूट ही न गया। लेकिन चैनल वालों की तरह हमारी मैडम भी बड़ी तीखी निकली...बोलीं नेता कभी नहीं सुधरेंगे। राजनीति की रोटी सेंकनी हों तो चिता की आग भी न छोड़ें...। शायद मैडम सही हैैं.... !

Wednesday, August 10, 2011

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Sunday, May 8, 2011

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Saturday, May 7, 2011

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Monday, May 2, 2011

Bhado Majhi

 करप्शन का 'टॉयलेट ट्विस्ट'
पत्रकार हूं, अड्डाबाजी पेशे की जरूरत है। रात को नींद कहां आती। जबतक रेलवे स्टेशन की घड़ी में दो बजता नहीं देख लूं नींद आस-पास तक नहीं भटकती। रविवार की रात को भी कुछ ऐसा ही हुआ। आज इंडिया अगेंस्ट करप्शन के मेले में भीड़ बढ़ाकर मैैं भी लौटा था, जमशेदपुर में खूब भीड़ जुटी। लगा भ्रष्टाचार से लौहनगरी ही ज्यादा त्रस्त है, या फिर यहीं के लोग ज्यादा फुर्सतिया हैैं। खैर, रीगल मैदान में मैैं भी 'मुंडी गिनानेÓ के लिए शामिल हो गया। दिल साफ हो न हो, लेकिन मन में इतनी बात ठानी थी कि भीड़ के मामले में जमशेदपुर कमजोर न दिखे। शायद भ्रष्टाचार के खिलाफ मन में थोड़ी सी चिंगारी भी सुलग चुकी थी। मैदान में ईमानदारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लडऩे का संकल्प लेकर आया था, सो यह मन में जरूर ठाना था कि आज से एक हफ्ते 'करप्शन-फ्री वीकÓ मनाउंगा। वैसे भी करप्शन में लिप्त होने का मौका तो कम ही मिलता रहा है, अब यह ठान चुका था कि भ्रष्टाचार बर्दाश्त भी नहीं करुंगा।  लेकिन शाम के पांच बजे से रात के दो बजे तक की मेरी जिंदगी के छोटे से सफर के दौरान मुझे नीम से भी ज्यादा कड़वा अनुभव हुआ। इतना कड़वा कि शहर की एक भी गतिविधि मेरे गले से नीचे उतर ही नहीं रही थी। भ्रष्टाचार का कॉकटेल से हर किरदार मुझे नहाया नजर आया।
शुरुआत रीगल मैदान से ही हुई। उस जगह से, जहां मैने अपनी फटफटी शान से पार्क की थी। जल्दबाजी में गाड़ी सड़क किनारे लगा दी थी, लौटा तो पत्रकारिता की सारी ठसक उस समय डगमगाने लगी जब सीटी बजाते सिपाही ने गाड़ी पर हाथ रख दिया और बोला-का...हीरो, कहां चल दिए। यहां गाड़ी पार्क करना मना है।। मन में विचार आया कि पत्रकारिता झाड़ कर सिपाहीजी को चलता कर दूं, लेकिन ईमानदारी की पाठशाला से कसमे-वायदे खाकर लौट रहा था, सो सोचा कोई गलत काम न करुंगा। भारी मन से खुद को समझाया कि आज तो कम से कम  दो सौ रुपए फाइन दे ही दूं...। लेकिन मेरे मन के भीतर चल रहे 'वल्र्ड-वारÓ के खत्म होने से पहले ही सिपाहीजी अपना लार टपकने से रोक न सके, और सोले के सुरमा भोपाली के अंदाज में बोले- निकालों सौ रुपए...। फाइन करुंगा तो लगेंगे दो सौ...। मन किया कि ईमानदारी का लंबा-चौड़ा लैक्चर दे डालूं खाखी वाले चोर को। लेकिन खुद को संभाला और आई-कार्ड की चमकी दिखा कर भ्रष्टाचार को नमस्कार कर निकल गया। थोड़ी देर उस सिपाही को मन में कोसा कि सिपाही ने खुद तो भ्रष्टाचार किया ही भ्रष्टाचार का विरोध करने का फीता काटने उतरे नए खिलाड़ी को, यानी मुझे  ईमानदार भी नहीं बनने दिया। खैर यहां नहीं तो आगे सही की सोच कर बढ़ा स्टेशन की ओर। 20 की मस्त स्पीड में फटफटिया का फेफड़ा फूंकते बढ़ ही रहा था कि बस थोड़ी देर में लोग सड़क का डिवाइडर से मोटरसाइकिल की जंग कराते दिखे। हर कोई इस फिराक में दिखा कि डिवाइडर फांद कर  किसी तरह जंग जीत ले। जाम लगा नहीं था, सड़क खुली थी, फिर लोग बारिश से ठंडे हुए मौसम में पसीना क्यों बहा रहे...??? यह सवाल जेहन में ठक-ठक कर ही रहा था कि आगे दो पुलिसकर्मी फटफटी चेकिंग में मस्त दिखे। समझ गया... लोग बिना हेलमेंट...बिना लाइसेंस के सड़क पर तफरीह कर रहे थे, इसलिए मारे डर के डिवाइडर का जीना मुहाल किए हुए थे। ऐसे भगोड़ों को देखना नई बात नहीं थी, लेकिन आज यह सब भ्रष्टाचार विरोधी चश्मे से देख रहा था, इसलिए नोटिस में आ रहा था। अफसोस हुआ...लगा...हम ही बेइमान...दूसरों से कैसे करें ईमानदारी की उम्मीद। आगे बढ़ा तो सिपाहियों ने ऊपर से नीचे टटोल डाला। लाइसेंस देखा, हेलमेट की तस्दीक की। फिर कुछ बोलते न बना तो टूटे दिल से बोले ..जाइए...। उनका जाइए  बोलना ऐसा  था मानों वे मुझे ग्र्राहक मान रहे हों, और मुझसे उन्हें नाउम्मीदी मिली हो। यहां फिर अन्ना पर अफसोस हुआ, उनके अभियान के संभावित परिणाम की कल्पना कर अफसोस हुआ।
पुलिस वालों के नाउम्मीद चेहरों को दूसरा मुल्ला खोजने के लिए छोड़ आगे बढ़ा। अब बारी स्टेशन की थी। प्लेटफॉर्म पर पत्रकार मंडली पहले से ही अड्डाबाजी की ड्यूटी बजा रही थी। शरिक हुआ तो भ्रष्टाचार...अन्ना...अभियान...सबकी चर्चा चली। लेकिन आज मेरी आंखों में जो चश्मा चढ़ा था, वह हर किरदार में भ्रष्ट अंग टटोल रहा था। मंडली की आवाज पर 'मंत्रीÓ (चाय वाले को पत्रकार यहां प्यार से मंत्री बुलाते हैैं) ने चाय पेश की। पांच रुपए का एक प्याला। स्टेशन चार्ज। हर जगह चाय तीन रुपए में एवैलेवल है, लेकिन मंत्री स्पेशल यहां पांच रुपए पार है। खैर दूध महंगा भी हो चला है, सो मेरे चश्मे ने इसे हजम कर लिया। देर तक 'गपास्टिंगÓ चली। इंडिया से इंग्लैैंड तक और अन्ना से ओबामा तक पर हम कथित बुद्धिजीवियों ने बाल का खाल निकाल दिया। डेढ़ बजने को आये थे। तभी कोड़ा कांड की चर्चा की ओर मेरा ध्यान गया। प्लेटफॉर्म पर बने सुलभ शौचालय के ठीक बाहर दो मुसाफिर शौचालय संचालक को कोड़ा कांड की याद दिला-दिला कर खूब हड़का रहे थे। कहने मं दोनों की भषा उड़ीसा की लग रही थी। एक बोला-यहां कोड़ा ने तो करोड़ों का घोटाला किया ही किया, झारखंड में तो शौचालय तक में भ्रष्टाचार हावी है। महाशय के कथन पर पहले तो मुझे गुस्सा आया। लगा कि बाहर से आकर झारखंड को गाली....अभी औकात बताता हूं। लेकिन उनके तर्क और तथ्य पर  ध्यान गया तो वास्तव में हालात पर हंसना में आया और रोना भी। हुआ यूं कि एक महाशय शौचालय गए, लौटने पर शौचालय संचालक ने उनसे पांच रुपए मांग लिए। जबकि सरकारी रेट चार्ट में साफ-साफ लिखा था टायलेट जाने के दो रुपए। इसी बात पर बात बिगड़ी। शौचालय में भ्रष्टाचार देख दोनों महाशयों ने आसमान सिर पर उठा लिया। उनकी बात जायज भी थी, आखिर झारखंड में सदन से शौचालय तक के भ्रष्टाचार को उन्होंने खड़े-खड़े गिनवा दिया। शौचालय के बाहर देखते ही देखते अर्जुन मुंडा के ब्रांड झारखंड की ऐसी की तैसी हो गई। हिम्मत नहीं हुई उन दो महाशयों के मुंह लगने की, उल्टे मन किया कि शौचालय संचालक को दो-तीन हाथ जमा दिया जाए, लेकिन ख्याल आया कि सदन में भी ऐसी ही लूट मची है। वहीं बड़ी लूट, यहां छोटी लूट...। लेकिन लूट तो लूट होती है, और भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार। खैर आज का सफर भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू की गई जंग के संभावित नतीजे की ओर इशारा कर गया, लेकिन इतना जरूर अच्छा हुआ कि मेरी आंखों में भ्रष्टाचार को देख पाने वाला चश्मा चढ़ गया, जो कल तक नहीं था। इतना जरूर हुआ कि कल तक जो भ्रष्टाचार मेरे गले से अमृत की तरह उतर जाता था, आज वह नीम से ज्यादा कड़वा लग रहा था। अंत में अपने आप को यह सांत्वना देते घर के लिए ठंडी हवा खाते रवाना हो गया कि शायद मेरी आंखों में जो चश्मा चढ़ा वह बाकी की आंखों में भी चढ़ेगी, मेरे गले को जो कड़वा लगा वो दूसरों को भी कड़वा लगेगा...लेकिन यारों कम से कम शौचालय तक तो भ्रष्टाचार को गिरने मत दो। बड़े लोगों की बूरी आदलों से हम छोटे लोगों को तो दूर रखो। डायबिटिीज अमीरों को होने दो हमें मजदरी करते ही मरने के लिए छोड़ दो....। अपने अंदर सोए अन्ना को अब तो जागने दो....।   

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Wednesday, April 13, 2011

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Thursday, March 31, 2011

"चचा" के सामने तो भोगले फेल हैं...

रामजनम नगर में जुगाड़ू क्रिकेट का मजा
अमर सोरेन, जमशेदपुर : फेसबुक पर बुधवार की सुबह 'नेट-फ्रेंड' रश्मि शर्मा की पोस्ट पढ़ी...। लिखा था, ...एक तमन्ना हुई पूरी, तो दूसरी आरजू मचल गई। मना ली हमने ढेरों खुशियां, अब परसों का अंजाम सोच, सांसें ठहर गईं....।। संदर्भ क्रिकेट वर्ल्ड कप से था, सो आइडिया क्लिक कर गया। सोचा क्यों न आज क्रिकेट के बुखार से तप कर ताजा-ताजा ठंडे हुए शहर का मूड टटोला जाए। ढाई बज रहे होंगे, शहर का मिजाज 37 डिग्री तक गर्माया हुआ था। गर्म माहौल में ठंडी छांव का मजा ले रहे फटफटिया को बहुत मूड तो नहीं था सड़क की खाक छानने का, लेकिन बेमन से ही सही जोड़ी निकल पड़ी। बोहनी मिश्रा जी ने कर दी। मित्र हैं, बोले साथ साकची तक छोड़ दो। धूप की दुश्मनी झेलने के लिए साथी मिल गया सो फटफटी पर बोझ बढ़ाते हुए साथ हो लिए। अभी ऑफिस से मानगो पुल की तरफ बढ़े ही थे कि सड़क की थमी रफ्तार देख मुए क्रिकेट की कमी खलने लगी। पहली बार क्रिकेट के लिए दिल से मन्नत मांगी, दिल-जिगर से आवाज निकली...काश भारत-पाक क्रिकेट मैच रोज हुआ करे....। कम से कम सड़क तो जाम से फ्री रहेगी। पीछे बैठे मिश्रा जी ने रोज-रोज के मैच वाला 'ट्रैफिक-मंत्राÓ सुन थोड़ी मुस्कराहट की मेहरबानी चिपका कर टॉपिक चेंज कर दिया। बड़ी मशक्कत के बाद पुल पार लगा। अब बारी शहर का मूड जानने की थी। इसलिए पहले फटफटी को मिश्रा जी की 'लिफ्टÓ से फ्री किया और लग गए अपने टोका-टोकी अभियान में। पहला पड़ाव बना पुराना कोर्ट के सामने खुला जूस दुकान। मौसम के मिजाज को देख यहां मजमा पहले से लगा था। जूस का आर्डर दे कर मजमे में खुद को भी शामिल कर लिया। सरकारी विभाग के कुछ कर्मचारी मंडली जमाए बैठे, जूस वाले की आंख की किरकिरी बन गए थे। शायद घंटे भर से उनकी मंडली वहीं जमी थी, सो जूस वाला चलता करने के मूड में दिखा। यहां भारत-पाक क्रिकेट मैच 'सीजन-टूÓ चल रहा था। सचिन के इतिहास, भुगोल और भविष्य का यहां पोस्टमार्टम किया जा रहा था। धौनी के भाग्य पर हाय-तौबा की। देवड़ी मंदिर की महिमा का फल माही पर बरसने का जोड़-घटाव तक कर डाला। मैच का ऑफ-द-ग्र्राउंड 'सीजन-टूÓ मैच में दनादन चौके-छक्के देख नंदू जूस वाले से रहा न गया और ग्र्रैग-चैबल की तरह फूहड़ जानकारियों का बाउंसर दे-दनादन शुरू कर दिया। नंदी जूसवाले ने कहा-धौनी किस्मत का सां.... है। जिसे छू ले सोना बना दे। यहां (कीनन) आता था तो कोइ पूछता नही था, अब देखिए। नंदी ने इतने पर दम न लिया, और भारत-पाक मैच की हाइलाइट-कमेंट्री में प्रस्तुत कर दी। कमेंट्री बंद करते-करते बोले दिल का फाइनल तो हम जीत गए, अब विश्व का कप जीतने की बारी है। यहां माहौल धीरे-धीरे ठंडा हुआ तो रुख किया डीसी ऑफिस का। सोचा, शायद यहां भी मैन-इन ब्लू ही चर्चे में हों। चपरासियों में चर्चा थी भी, लेकिन साहबों का पसीना तो आज रामजनम नगर ने छुड़ाया हुआ था। डीसी मैडम क्रिकेट अपडेट की तरह रामजनम नगर का अपडेट ले रहीं थीं, तो वही एडीएम साहब फिल्ड से डीसी ऑफिस दौड़ लगा रहे थे। माहौल अनुकूल न देख आगे बढ़ गया। अब बारी थी फेमस चचा चाय (राजेंद्र विद्यालय के सामने) दुकान की। आम दिनों के मुकाबले आज यहां भीड़ कम थी। लेकिन यहां भी पाकिस्तान को हराने के दौरान उबला ब्लू-ब्लीड अब तक ठंडा न पड़ा था। यहां भी रनिंग कमेंट्री लाइव थी। कल जिन्होंने मैच मिस किया, वैसे मिस तो किसी ने नहीं किया वे भी रिपीट टेलिकास्ट यहां रिकवर कर सकते थे। स्टील सिटी आज स्पोट्र्स सिटी बनी नजर आ रही थी। चचा चाय दुकान वाले ने पहुंचते-पहुंचते सबसे पहले बधाई दी। कहा, पाक को हरा दिया हमने, मजा आ गया। समझ गया कि अब चचा भी कमेंट्री की लंबी टॉनिक देने वाले हैैं, लेकिन समझते-बूझते इमोशन का सम्मान करते हुए सुनने बैठ गए। वैसे तो चचा को चाय में पानी मिलाने और अंगीठी से धुकधुकाने से फुर्सत कम ही मिलती थी, लेकिन आज चचा भी फॉर्म में नजर आए। ठोंक दिया क्रिकेट नॉलेज का चौका-छक्का। आज तो चचा के सामने भोगले फेल लग रहे थे। पाकिस्तान के 11 खिलाड़ी को चचा नाम से पहचान रहे थे। और तो और युवराज के क्रिकेट डायरी का हिसाब भी बता रहे थे। चौंका...लगा कि क्रिकेट के तो सब जानकार हैैं। गलत नहीं कि यहां धर्म बन गया है क्रिकेट। यहां चचा के चाय की चुस्की लेते क्रिकेट की टॉनिक ली तो सोचा हाइ-फाइ लोगों से हालचाल लिया जाए। चला भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के घर। घर जाने के क्रम में जेसे ही बिष्टुपुर गोलचक्कर पहुंचा, रीगल बिल्डिंग पर लगा धौनी का पोस्टर चहक उठा। तस्वीर में बैट उठाए धौनी का पोस्टर या तो आज कुछ ज्यादा ही चमक रहा था, या फिर आंखे चौंधिया गई थी। बहरहाल रीगल चौक पर धौनी ने स्वागत किया। आगे बढऩे से पहले सोचा कि शीतल छाया में ठंडे पेय का आनंद उठाते हुए लोगों के उमड़ते-घुमड़ते विचार सुने जाए। यहां भी सीन क्रिकेटिया ही था। कल का रोमांच आज तक यहां सिर पर नाच रहा था। लोग पी तो रहे थे मिक्स ठंडा, लेकिन नशे में थे क्रिकेट के। जिसे देखो वही क्रिकेट की धुन रमता दिखा। यहां से दिनेशानंद जी के घर की और बढ़ा तो देखा वीमेंस कालेज के ठीक सामने बड़ा सा तिरंगा शान से लहरा रहा था, मानो बार-बार जीत का इशारा कर रहा हो। खैर आगे बढ़ा, दिनेशानंदजी घर पर थे नहीं सो वापस हो लिया। सोचा रामजनमनगर का हाल देख लिया जाए। दोपहर में ही इस बस्ती को उजाड़ दिया गया था। अत्किमण के कारण। यहां नजारा दुखद था। पाकिस्तान के जीत की खुशी यहां काफूर नजर आई। लोग घर टूटने से बिखरा अपना तिनका-तिनका चुनने में मशगूल दिखे, लेकिन क्रिकेट का फीवर यहां भी पीछा कहां छोडऩे वाला था। बच्चों को क्या मतलब कि घर उजड़ा या संसार छूटा, उन्हें तो बस इतना मालूम था कि पाकिस्तान को हरा कर इंडिया फाइनल पहुंचा था, सो हाथ में लकड़ी के पïट्टे से बना जुगाड़ू बैट और इंट के ढेर जुटा कर बनाया गया जुगाड़ू विकेट पर खेल चालू था। बॉलिंग हो रही थी, बैटिंग हो रही थी और पूरे जो के साथ अपील भी हो रही थी। बच्चों की यह मासूम अपील रामजनमनगर के सन्नाटे को कई बार चीर देती। बेबसी समेटे रामजनमनगर के लोग बच्चों के जुगाड़ू क्रिकेट को देख दिल हल्का कर लेते....। रामजनम नगर के इस नजारे ने साफ कर दिया कि लोहे के इस शहर में लोहे का जिगर रख्रने वाले लोग आशियाना टूटने के बावजूद क्रिकेट के जोश को दरकिनार नहीं कर पा रहे थे। लब्बोलुवाब यह कि पाक फतह करने के बाद जमशेदपुर पूरी तरह क्रिकेटपुर बना नजर आया....।

Friday, March 18, 2011

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

bhado majhi

bhado majhi

Wednesday, February 9, 2011

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

Bhado Majhi

खरसावां में जीत हार के मायने

भादो माझी, खरसावां
लगातार राजनीतिक अस्थिरता से जूझते झारखंड के लिए खरसावां में जीत-हार के कई मायने हैं। यहां सवाल सिर्फ अर्जुन मुंडा या बाबूलाल मरांडी की जीत-हार का नहीं है। मजबूती से कदम बढ़ा रहे मुंडा जीते तो सरकारी मशीनरी को गति मिलेगी। लोकप्रिय सरकार तेजी से काम करेगी। अधूरी योजनाएं पूरी होंगी। राष्ट्रीय खेलों सरीखे कुछ प्रतिष्ठा परक काम होंगे। लेकिन यदि हारे तो..? इसका जवाब कठिन है।
खरसावां विधानसभा के मतदाता व गम्हरिया के नारायणपुर निवासी गम्हरिया प्रखंड के नारायणपुर के रवि चन्द्र महतो कहते भी हैं-मुंडा को विजयी बनाने से ही झारखंड की राजनीति में फिलहाल स्थिरता आयेगी। वरना फिर अनिश्चय की स्थिति। सरकारी मशीनरी ठप। जैसा कि जनसभा में केंद्रीय पर्यटन मंत्री सुबोधकांत सहाय कहते भी हैं कि खरसावां की जनता ही इतिहास बनायेगी। स्थिरता का या कुछ और। हां, इतना होगा कि झाविमो का विधायक बल 11 से बढ़कर 12 हो जाएगा।
खरसावां सजग है। सलाइडीह निवासी बुधराम होनहागा कहते हैं- सड़क, बिजली और पानी से विकास की बात की जाती है। खरसावां में यह सब कुछ दिखता है। कुछ चीजें रह गई हैं लेकिन उसके लिए खरसावां के साथ पूरे राज्य का नेतृत्व बदल दिया जाए तो शायद फिर एक बार विकास का पहिया थम जाएगा। डोडा गांव इसकी तस्दीक भी करता है। राज्य बनने और यहां से मुख्यमंत्री का नेतृत्व मिलने से आकर्षणी से 10 किलोमीटर आगे सुदूर गांव में भी रात में रोशनी गुलजार दिखती है तो सड़के चमकती नजर आती हैं। डोडा गांव निवासी
सुशेन महतो कहते है-मुंडा ने विधायक रहते जितना काम किया उससे कहीं आगे बढ़ कर कल्याण मंत्री और मुख्यमंत्री रहते किया।
पड़ोस के सलाईडीह में बिजली आपूर्ति की तैयारी पूरी दिखती है। सलाईडीह निवासी गणेश बुड़ीउली के मुताबिक यहां बिजली आ जाए तो परेशानी ही खत्म हो जाए। सड़क बन गयी है बिजली भी आ ही जाएगी। लेकिन लाख टके का सवाल है सबके फायदे की बात समझ में किसे आयेगी?

अर्जुन के गांव में जीत का इंतजार

अर्जुन के गांव में  जीत का इंतजार
भादो माझी, खेजुरदा (खरसावां)
मैं खेजुरदा में हूं, यह वही गांव है जहां मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के बाप-दादा पले बड़े। खुद अर्जुन ने भी अपने बचपन के दिन यहीं गुजारे। गांव का झोपड़ीनुमा घर मुंडा के चुनावी पोस्टर के साथ खड़ा है। यहां की  जायदाद की देखरेख करने वाली उर्मिला प्रमाणिक पूरे दावे के साथ कहती हैं-अर्जुन अमार पुत्रा आछे, वोई नाई जीतबे तो के जीतबे(अर्जुन हमारा बेटा है, वह नहीं जीतेगा तो कौन जीतेगा)। मुंडा की यहां 12 बीघा जमीन है और उस पर एक फूस का घर झारखंडी विरासत को आज भी दर्शा रहा है। उनकी इसी पुश्तैनी जमीन पर खड़ा बैर का पेड़ खुद में ढेरों खट्टी-मीठी यादें समेटे है तो खजूर का पेड़ गांव के नाम को सार्थक कर रहा है। उर्मिला प्रमाणिक बताती है कि शुक्रवार को बहू मीरा मुंडा आई थी। यहां उपजाए गए बैगन लेकर गई और वादा किया कि पति (अर्जुन) के चुनाव जीतने के बाद फिर आएगी।
माहौल चुनावी है और खेजुरदा के हरघर में भाजपा के झंडे लहरा रहे हैं, लोग उत्साहित हैं। बात पड़ोसी संतोष महतो की करें या फिर गुरूबारी की। उन्हें इंतजार है तो बस अर्जुन के एक और जीत की है। ठीक वैसी ही खुशी की जो लगातार 15 साल से अर्जुन इस गांव को दे रहे हैं। कभी विधायक बन कर तो कभी कल्याण मंत्री बनकर या फिर मुख्यमंत्री बनने की खुशी। उससे भी आगे बढ़ कर तब जब संसद की दहलीज पर पहुंच खेजुरदा का मान बढ़ाया। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में भी गांव की मिट्टी की महक पहुंचाने वाले मुंडा के प्रति खेजुरदा के लोगों का प्यार वहां के शिवालय में भी दिखता है। पड़ोसी करण प्रमाणिक कहते हैं- मुंडाजी की मां ने इस मंदिर की स्थापना गांव के लिए की है। यहां सड़क, बिजली और स्कूल उन्हींकी देन है। खरसावां बाजार और चांदनी चौक से लेकर खेजुरदा तक चुनावी उत्साह अलग-अलग रंग में है। कहीं ईंट के भट्ठे हैं तो कहींसूखे खेत में जिंदगी तलाशते लोग। लेकिन एक चीज हर जगह सामान्य है-अर्जुन का एक और युद्ध, वही अर्जुन जिसने हर बार लक्ष्य पर निशाना साधा है। अब बारी एक और अग्नि परीक्षा की है।
(इनसेट)
...लेकिन खेजुरदा में एक और कहानी भी है
खरसावां: अर्जुन मुंडा के गांव खेजुरदा में एक और कहानी भी है। गांव के परगना जीतराम टुडू के निधन की कहानी। उनका निधन अर्जुन के सीएम के तौर पर तीसरी बार शपथ लेने के दूसरे ही दिन हो गया था। उनकी विधवा सारो टुडू आज भी अर्जुन का इंतजार कर रही है जो कभी उनकी गोद में खेला करता था। आंखों में छलकते आंसुओं को छिपा कर सारो लड़खड़ाती जुबान से कहती है- मीरा तो आई लेकिन अर्जुन घर नहींआए। उनके मरने की खबर दी थी लेकिन बताया कि दिल्ली में हैं। मीरा भी चुनाव प्रचार करने आई थी तब जब वह (सारो टुडू) घर में नहीं थी।
सारो को तकलीफ इस बात की है कि उनके हाथों पला-बढ़ा अर्जुन अब उन्हें भूल गया। तीन बेटों में किसी को नौकरी तो नसीब नहींही हुई उन्हें भी न तो वृद्धा पेंशन मिला और न विधवा पेंशन। सारो इस संवाददाता से कहती है- साहब को बता दीजिएगा कि उन्हें बचपन में खाना खिलाने वाले हाथों को अब कुछ भी नसीब नहींहै।