Friday, March 26, 2010

सेंदरा- कानून के दायरे को परंपरा की चुनौती

भादो माझी, जमशेदपुर : जानवर घट रहे हैं, वन क्षेत्र भी सिकुड़ते जा रहे हैं। ऐसे में एक बार फिर आदिवासी समुदाय ने सेंदरा का शंखनाद कर दिया है। एक ऐसे पारंपरिक पर्व का शंखनाद जिसे मनाया ही जाता है वन्य जीवों का शिकार करने के लिए। ऐसे में अब वन विभाग की नींद उड़ गई है।
आदिवासी सदियों की अपनी परंपरा छोड़ना नहीं चाहते और वन विभाग अपनी आंखों के सामने जानवरों का शिकार होने नहीं देना चाहता, ऐसे में अब परंपरा बनाम प्रशासन की जंग शुरू हो चुकी है। सेंदरा के मसले पर आदिवासी परंपरा और कानून (प्रशासन) के बीच कभी न खत्म होने वाली यह जंग लंबे समय से चल रही है। आदिवासी अपनी सदियों पुरानी परंपरा की दुहाई देकर सेंदरा बंद नहीं करना चाहते और वन विभाग कानून का हवाला देकर सेंदरा होने नहीं देना चाहता।
भुलाई नहीं जा सकती परंपरा
झामुमो विधायक चंपाई सोरेन सेंदरा के बाबत कहते हैं कि परंपरा जमाने से चलती आ रही है, और चूंकि आदिवासी समुदाय अब परंपरा को संयमित तरीके से मनाने को तैयार है, इसलिए सेंदरा को लेकर किसी तरह का विवाद उत्पन्न नहीं किया जाना चाहिए। वहीं झामुमो विधायक रामदास सोरेन कहते हैं कि आदिवासी समुदाय कानून का सम्मान करता है, लेकिन परंपरा से समझौता करना भी समुदाय के लिए संभव नहीं।
गांव-गांव भेजे गए 'गिरा साकाम'
सेंदरा की तिथि निर्धारित हो चुकी है, लेकिन फिलहाल इसे वन विभाग की तैयारियों को मद्देनजर रखते हुए गुप्त रखा गया है। दोलमा बुरु सेंदरा समिति के सदस्य डा. छोटे हेम्ब्रम ने बताया कि गांव-गणराज्यों को सेंदरा के लिए आमंत्रण देने हेतु संदेश पत्र (गिरा साकाम) भेज दिया गया है, जिसकी गांठ 14 तारीख को समाप्त होगी, उसी दिन सेंदरा की तिथि सार्वजनिक कर दी जाएगी।
अप्रैल  के अंतिम हफ्ते में होगा सेंदरा
सेंदरा के लिए दलमा जंगल में चढ़ाई करने हेतु मार्च महीने की अंतिम हफ्ते की तिथि निर्धारित की गई है। दोलमा बुरु सेंदरा समिति के प्रमुख सह दोलमा राजा (दलमा के पारंपरिक राजा) राकेश हेम्ब्रम ने इस बाबत गिरा साकाम जारी कर दिया है। 
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सेंदरा में शिकार हुए कई वन्यप्राणी

2008 :- वर्ष 08 में 13 मई को सेंदरा (शिकार) किया गया। दोलमा बुरु सेंदरा समिति की औपचारिक जानकारी के मुताबिक इसमें एक मोर, एक हिरण, दो खरगोश व एक मैना समेत कई पक्षी मारे गए।  
2009 :- वर्ष 09 में चार मई को सेंदरा किया गया। सेंदरा समिति के मुताबिक इस दौरान चार हिरण, पांच जंगली सुअर, एक कोटरा व एक गिलहरी समेत कई पक्षी मारे गए।
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''आदिवासियों से अपनी परंपरा में लचीलापन लाने के लिए आग्रह किया जा रहा है। इसके लिए सेंदरा समिति के साथ बैठकें भी की जा रही है। जागरूकता ही वन्य जीवों को बचा सकता है। पर्व सांकेतिक भी मन सकता है।''
एटी मिश्रा, डीएओ-धालभूम
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''सेंदरा की परंपरा को अचानक लचीला करना संभव नहीं। आदिवासी समुदाय कोशिश करेगा कि कम वन्यप्राणियों का शिकार हो, लेकिन यह धीरे-धीरे ही संभव है। एक बार में बदलाव संभव नहीं। हम भी जानवरों की अहमियत समझते हैं।''
डा. छोटे हेम्ब्रम, दोलमा बुरु सेंदरा समिति

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