Saturday, December 11, 2010
Monday, December 6, 2010
Wednesday, November 24, 2010
Thursday, November 18, 2010
जिंदाबाद की जगह ...व्हाट ए शॉट अर्जुन जी!
भादो माझी, जमशेदपुर
अर्जुन मुंडा ‘टी’ से ड्राइव शॉट मारने के लिए तैयार...। गोल्फ स्टीक दो बार हवा में उछाली और तीसरी बार में गोल्फ बॉल को जोर से ड्राइव शॉट पर मारा। बॉल ‘टी एरिया’ से सीधे ‘ग्रीन एरिया’ के सामने जा पहुंची...। इतने में ‘...व्हाट ए शॉट! व्हाट ए शॉट मुंडा जी! ब्रिलिएंट..’ की आवाज गूंज उठी। हमारे लिए यह थोड़ा सा नया अनुभव था, क्योंकि इससे पहले सिर्फ अर्जुन मुंडा जिंदाबाद के नारे ही सुना करते थे। खैर, बुधवार सुबह की शुरुआत बेल्डीह गोल्फ कोर्स में कुछ ऐसी ही चियर-अप क्लैपिंग से हुई। आज दो-दो ‘अर्जुन’ गोल्फ कोर्स पर जो डटे थे। एक अर्जुन राजनीतिक मैदान का महारथी तो दूसरा गोल्फ कोर्स का चैम्पियन। एक झारखंड का मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, तो दूसरा अमेरिकी पीजीए टूर का चैम्पियन अर्जुन अटवाल।
सत्ता के खेल में तीसरी बार गोल दाग चुके अर्जुन मुंडा आज ‘गोल्फर’ को गोल्फ के मैदान में ही मात देने की ठान बैठे थे। हालांकि उनका यह अरमान तो पूरा न हुआ, लेकिन हां, भारत के ‘ग्रेट गोल्फर’ से राजनीतिक मैदान के इस खिलाड़ी को गोल्फ के मैदान में ‘पार’ पर ‘पार’ लगाने के कारण खूब बधाइयां मिली। अटवाल कंधे में चोट के कारण गोल्फ कोर्स में आज दर्शक की भूमिका में थे। मुंडा के शॉट को देख लग ही नहीं रहा था कि वे गोल्फ के प्रोफेशनल खिलाड़ी नहीं हैं। अर्जुन मुंडा ने बेल्डीह गोल्फ ग्राउंड के 9 होल के सेट में 17 बार बॉल होल में डाला। अर्जुन कई बार ‘बंकर’ में फंसे भी, लेकिन राजनीतिक सूझबूझ से जिस तरह वे तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे, बिल्कुल उसी तरह बंकर से भी उन्होंने ‘ग्रीन एरिया’ को कवर किया। गोल्फ कोर्स में सूबे के मुखिया के शॉट पर शॉट बेहतरी की ओर बढ़े जा रहे थे, और इसी के साथ कारपोरेट जगत की बड़ी हस्तियों की दिलचस्पी भी उनके शॉट को लेकर बढ़ती जा रही थी। टाटा स्टील के वाइस प्रेसिडेंट (कारपोरेट सर्विसेज) संजीव पॉल, जुस्को के चेयरमैन बीएल रैना और टाटा ओपन गोल्फ-2009 के चैंपियन गुरखी शेरगिल सरीखी हस्तियां मुंडा के शॉट की कायल हुए जा रही थी। नौ होल के सफर में इस दौरान कॉरपोरेट हस्तियों संग मुंडा ने झारखंड के विकास रोडमैप को जमीन पर उतारने की इच्छाशक्ति को भी जाहिर कर दिया। ब्लैक टी-शर्ट में गोल्फ स्टीक पकड़े सूबे के मुखिया इस दौरान खिलाड़ियों की ही तरह आज खूब जंच भी रहे थे। मुंडा की पार्टनरशिप गुरखी शेरगिल संग हुई थी। दोनों ने पहले दो होल पर बढ़त बनाई। उनके प्रतिद्वंद्वी बीएल रैना और संजीव पॉल पीछे ही रहे।
इस दौरान मुं़डा पूरी तरह रिलैक्स दिखे। गोल्फ में मस्त मुंडा को देख संजीव पॉल को कहना पड़ा कि ‘...ही इज वैरी कूल गॉय। वी जस्ट कांट इवेन इमेजीन दैट हैव मच प्रेशर ही फेस एवरी डे...।’
भादो माझी, जमशेदपुर
अर्जुन मुंडा ‘टी’ से ड्राइव शॉट मारने के लिए तैयार...। गोल्फ स्टीक दो बार हवा में उछाली और तीसरी बार में गोल्फ बॉल को जोर से ड्राइव शॉट पर मारा। बॉल ‘टी एरिया’ से सीधे ‘ग्रीन एरिया’ के सामने जा पहुंची...। इतने में ‘...व्हाट ए शॉट! व्हाट ए शॉट मुंडा जी! ब्रिलिएंट..’ की आवाज गूंज उठी। हमारे लिए यह थोड़ा सा नया अनुभव था, क्योंकि इससे पहले सिर्फ अर्जुन मुंडा जिंदाबाद के नारे ही सुना करते थे। खैर, बुधवार सुबह की शुरुआत बेल्डीह गोल्फ कोर्स में कुछ ऐसी ही चियर-अप क्लैपिंग से हुई। आज दो-दो ‘अर्जुन’ गोल्फ कोर्स पर जो डटे थे। एक अर्जुन राजनीतिक मैदान का महारथी तो दूसरा गोल्फ कोर्स का चैम्पियन। एक झारखंड का मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, तो दूसरा अमेरिकी पीजीए टूर का चैम्पियन अर्जुन अटवाल।
सत्ता के खेल में तीसरी बार गोल दाग चुके अर्जुन मुंडा आज ‘गोल्फर’ को गोल्फ के मैदान में ही मात देने की ठान बैठे थे। हालांकि उनका यह अरमान तो पूरा न हुआ, लेकिन हां, भारत के ‘ग्रेट गोल्फर’ से राजनीतिक मैदान के इस खिलाड़ी को गोल्फ के मैदान में ‘पार’ पर ‘पार’ लगाने के कारण खूब बधाइयां मिली। अटवाल कंधे में चोट के कारण गोल्फ कोर्स में आज दर्शक की भूमिका में थे। मुंडा के शॉट को देख लग ही नहीं रहा था कि वे गोल्फ के प्रोफेशनल खिलाड़ी नहीं हैं। अर्जुन मुंडा ने बेल्डीह गोल्फ ग्राउंड के 9 होल के सेट में 17 बार बॉल होल में डाला। अर्जुन कई बार ‘बंकर’ में फंसे भी, लेकिन राजनीतिक सूझबूझ से जिस तरह वे तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे, बिल्कुल उसी तरह बंकर से भी उन्होंने ‘ग्रीन एरिया’ को कवर किया। गोल्फ कोर्स में सूबे के मुखिया के शॉट पर शॉट बेहतरी की ओर बढ़े जा रहे थे, और इसी के साथ कारपोरेट जगत की बड़ी हस्तियों की दिलचस्पी भी उनके शॉट को लेकर बढ़ती जा रही थी। टाटा स्टील के वाइस प्रेसिडेंट (कारपोरेट सर्विसेज) संजीव पॉल, जुस्को के चेयरमैन बीएल रैना और टाटा ओपन गोल्फ-2009 के चैंपियन गुरखी शेरगिल सरीखी हस्तियां मुंडा के शॉट की कायल हुए जा रही थी। नौ होल के सफर में इस दौरान कॉरपोरेट हस्तियों संग मुंडा ने झारखंड के विकास रोडमैप को जमीन पर उतारने की इच्छाशक्ति को भी जाहिर कर दिया। ब्लैक टी-शर्ट में गोल्फ स्टीक पकड़े सूबे के मुखिया इस दौरान खिलाड़ियों की ही तरह आज खूब जंच भी रहे थे। मुंडा की पार्टनरशिप गुरखी शेरगिल संग हुई थी। दोनों ने पहले दो होल पर बढ़त बनाई। उनके प्रतिद्वंद्वी बीएल रैना और संजीव पॉल पीछे ही रहे।
इस दौरान मुं़डा पूरी तरह रिलैक्स दिखे। गोल्फ में मस्त मुंडा को देख संजीव पॉल को कहना पड़ा कि ‘...ही इज वैरी कूल गॉय। वी जस्ट कांट इवेन इमेजीन दैट हैव मच प्रेशर ही फेस एवरी डे...।’
Sunday, November 7, 2010
Tuesday, November 2, 2010
Sunday, October 10, 2010
champai soren becom jharkhand minister
bhado majhi, jamshedpur : चंपई सोरेन के पिता सिमल सोरेन व माता माधो सोरेन को अपने बेटे को ज्यादा न पढ़ा पाने का मलाल है। पिता सिमल सोरेन बताते हैैं कि खेती-बाड़ी कर वे अपने बेटे को जितना पढ़ा सकते थे, उतना पढ़ाया। मैट्रिक तक पढ़ाने के बाद घर की आर्थिक स्थिति उस लायक नहीं थी कि उसे आगे की पढ़ाई कराई जाए, इसलिए खेती-बाड़ी में झोंक दिया। माता माधो सोरेन कहतीं हैं कि हालात ठीक होते तो बेटे को और पढ़ाती। पिता कहते हैैं -'चंपई को ज्यादा पढ़ाते-लिखाते तो भी वह जनता की सेवा करता, अब भी कर रहा है, यह हमारे लिए गर्व की बात है।Ó चंपई के पिता को इस बात के लिए भी गर्व है कि उसके बेटे ने अपने आप को अब भी किसान बनाए रखा है। सफलता के साथ उसके पैरों में पंख नहीं लगे और अब भी अपने गांव से उतना ही लगाव है जितना पहले था। चंपई की माता कहतीं हैैं कि चंपई की शादी कम उम्र में कर देनी पड़ी थी। इसलिए भी उसकी पढ़ाई लिखाई बाधित हुई, लेकिन आज वह जनता के लिए काम कर रहा है, इसपर हमें नाज है।
jharkhand mukti morcha on red carpet
चंपई के गांव में सादगी...सन्नाटा...
भादो माझी, जमशेदपुर : चंपई सोरेन के गांव में शुक्रवार को गजब की खामोशी छाई हुई थी। गांव का लाल राजधानी रांची में मंत्री पद की शपथ ले रहा था लेकिन गांव वाले खुशी से उछलने के बजाय अपने-अपने काम में व्यस्त थे। यह आलम सिर्फ गांव में ही नहीं छाया था, बल्कि खुद चंपई के घर में भी कुछ ऐसी ही चुप्पी थी। घर में चंपई की पत्नी मानको सोरेन रंगाई-पोताई में व्यवस्त थीं तो बहुएं घर के अन्य काम में। बेटे अपने काम से घर से बाहर गए थे जबकि छोटी बेटियां स्कूल। ऐसा नहीं हैै कि चंपई के परिवार व जिलिंजगोड़ा गांव के लोगों को उनके मंत्री बनने की खुशी नहीं है लेकिन इस बार मानो चंपई ने किसी प्रकार का ताम-झाम नहीं करने का निर्देश दे रखा हो। न तो खुशी का प्रदर्शन करने के लिए एक दूसरे को मिठाई खिलाने हेतु घर में मिठाई थी और न ही घर के आंगन में समर्थकों का राजनीतिक अखाड़ा ही लगा था। न ढोल-न नगाड़े, न रंग-न अबीर। सादगी का आलम यह था कि घर के सभी पुरुष सदस्यों के बाहर होने के कारण चंपई के घर में बिजली तक नहीं थी। जेनरेटर चलाने के लिए कोई था नहीं सो, शपथ ग्रहण समारोह का दृश्य भी न देख पाए। बहरहाल पत्रकारों की गतिविधियों ने परिवार को आश्वस्त कर दिया कि चंपई ने शपथ ले ली है। हालांकि इस दौरान चंपई के पिता सिमल सोरेन और माता माधो सोरेन की आंखों में खुशी देखते बन रही थी। बेटे को किसान से मंत्री बनाने तक का सफर माता-पिता की आंखों में जैसे तैर रहा था। 80 की उम्र पार कर चुके चंपई के बूढ़े माता-पिता के शरीर में अपने बेटे की सफलता को देख नई ऊर्जा का संचार हुआ जा रहा था। आम दिनों में अपने कमरे तक सीमित रहने वाले दोनों बूढ़े माता-पिता आज घर के बरामदे पर बैठ सबका अभिवादन स्वीकार कर रहे थे। बड़े बेटे सिमल (उकिल) की पत्नी घर आने वाले लोगों के सत्कार में जुटी थीं तो उनकी ननद भी फोटो अल्बम देख अपने पिता के मंत्री बनने पर फूले नहीं समा रही थी। कुल मिलाकर जिलिंजगोड़ा गांव में शुक्रवार को न तो पटाखे फूटे, न लड्डू बंटे और न ही ढोल बजे। सादगी के साथ गांव के लाल को लालबत्ती मिलने की खुशी मनाई गई।
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गांव वाले सोहराय की तैयारी में मस्त
राजनगर इलाके में पडऩे वाले जिलिंजगोड़ा गांव के लोग शुक्रवार को सोहराय (आदिवासियों की दीपावली) की तैयारी में मस्त दिखे। लड़कियां 'जेरेड़-पोतावÓ (रंगाई-पोताई) में लीन, तो वहीं महिलाएं घर के लिए मिïट्टी ढोतीं दिखीं। गांव के लोगों के लिए आम दिनों की ही तरह शुक्रवार का दिन भी सामान्य ही था।
अधिकांश गांव वालों को जानकारी नहीं
अधिकांश गांव वालों को जानकारी ही नहीं थी कि आखिर हुआ क्या है। उन्हें इतना तो पहले से पता था कि चंपई विधायक हैैं लेकिन वे मंत्री बने हैैं, यह सूचना किसी को न थी। हां, कुछ लोग अवश्य जानते भी थे कि चंपई के मंत्री बनने की बात चल रही है, लेकिन उन्हें यह ठीक-ठीक मालूम नहीं था कि आखिर 'मंत्रीÓ पद होता क्या बला है?
अब भी है चंपई का मिïट्टी से बना पुश्तैनी घर
चंपई सोरेन भले कई बार विधायक रहे हों और अब मंत्री भी बन गए हों, लेकिन वे न तो शहर से दूर बसे, न अपना गांव छोड़ा और न ही मिïट्टी से बने अपने पुश्तैनी घर को तोड़ा। उन्होंने महलनुमा घर बनाया तो है लेकिन पुश्तैनी घर को तोड़ कर नहीं। मिïट्टी से बना घर आज भी चंपई के घर पहुंचते सबसे पहले स्वागत करता है।
संयुक्त परिवार की मिसाल सोरेन बखुल
सोरेन बखुल (हवेली) संयुक्त परिवार की मिसाल है। यहां चंपई सोरेन का पूरा परिवार तो रहता ही है, उनके दो भाई दिकू सोरेन और जवाहरलाल सोरेन का परिवार उनके साथ ही रहता है। पिता सिमल सोरेन, माता माधो सोरेन आज भी परिवार के अभिभावक हैैं। चंपई के बड़े बेटे सिमल सोरेन व मझले बेटे बाबूलाल सोरेन अपनी पत्नी संग परिवार का हिस्सा हैैं तो बेटे बबलू सोरेन, आकाश सोरेन समेत बेटी माधो सोरेन, दुखनी सोरेन व बाले सोरेन भी साथ ही हैैं।
चंपई के आगमन पर मनेगा सोहराय
जिलिंजगोड़ा गांव में इस बार सोहराय समय से पहले ही आ जाएगा। गांव का लाल मंत्री बना है, इसलिए गांव वालों के तैयारी है कि इस बार जब चंपई गांव आएंगे तो उनका स्वागत समारोह किसी पर्व से कम न हो। जिलिंजगोड़ा गांव के माझी बाबा (ग्रामप्रधान) राहुल सोरेन के मुताबिक चंपई के आगमन पर पूरे गांव को फूलों से सजाया जाएगा। उनका स्वागत संथालों के पारंपरिक दासाय नृत्य से किया जाएगा। गांव के ही मानिक हांसदा ने कहा कि चंपई का स्वागत ऐतिहासिक होगा।
भादो माझी, जमशेदपुर : चंपई सोरेन के गांव में शुक्रवार को गजब की खामोशी छाई हुई थी। गांव का लाल राजधानी रांची में मंत्री पद की शपथ ले रहा था लेकिन गांव वाले खुशी से उछलने के बजाय अपने-अपने काम में व्यस्त थे। यह आलम सिर्फ गांव में ही नहीं छाया था, बल्कि खुद चंपई के घर में भी कुछ ऐसी ही चुप्पी थी। घर में चंपई की पत्नी मानको सोरेन रंगाई-पोताई में व्यवस्त थीं तो बहुएं घर के अन्य काम में। बेटे अपने काम से घर से बाहर गए थे जबकि छोटी बेटियां स्कूल। ऐसा नहीं हैै कि चंपई के परिवार व जिलिंजगोड़ा गांव के लोगों को उनके मंत्री बनने की खुशी नहीं है लेकिन इस बार मानो चंपई ने किसी प्रकार का ताम-झाम नहीं करने का निर्देश दे रखा हो। न तो खुशी का प्रदर्शन करने के लिए एक दूसरे को मिठाई खिलाने हेतु घर में मिठाई थी और न ही घर के आंगन में समर्थकों का राजनीतिक अखाड़ा ही लगा था। न ढोल-न नगाड़े, न रंग-न अबीर। सादगी का आलम यह था कि घर के सभी पुरुष सदस्यों के बाहर होने के कारण चंपई के घर में बिजली तक नहीं थी। जेनरेटर चलाने के लिए कोई था नहीं सो, शपथ ग्रहण समारोह का दृश्य भी न देख पाए। बहरहाल पत्रकारों की गतिविधियों ने परिवार को आश्वस्त कर दिया कि चंपई ने शपथ ले ली है। हालांकि इस दौरान चंपई के पिता सिमल सोरेन और माता माधो सोरेन की आंखों में खुशी देखते बन रही थी। बेटे को किसान से मंत्री बनाने तक का सफर माता-पिता की आंखों में जैसे तैर रहा था। 80 की उम्र पार कर चुके चंपई के बूढ़े माता-पिता के शरीर में अपने बेटे की सफलता को देख नई ऊर्जा का संचार हुआ जा रहा था। आम दिनों में अपने कमरे तक सीमित रहने वाले दोनों बूढ़े माता-पिता आज घर के बरामदे पर बैठ सबका अभिवादन स्वीकार कर रहे थे। बड़े बेटे सिमल (उकिल) की पत्नी घर आने वाले लोगों के सत्कार में जुटी थीं तो उनकी ननद भी फोटो अल्बम देख अपने पिता के मंत्री बनने पर फूले नहीं समा रही थी। कुल मिलाकर जिलिंजगोड़ा गांव में शुक्रवार को न तो पटाखे फूटे, न लड्डू बंटे और न ही ढोल बजे। सादगी के साथ गांव के लाल को लालबत्ती मिलने की खुशी मनाई गई।
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गांव वाले सोहराय की तैयारी में मस्त
राजनगर इलाके में पडऩे वाले जिलिंजगोड़ा गांव के लोग शुक्रवार को सोहराय (आदिवासियों की दीपावली) की तैयारी में मस्त दिखे। लड़कियां 'जेरेड़-पोतावÓ (रंगाई-पोताई) में लीन, तो वहीं महिलाएं घर के लिए मिïट्टी ढोतीं दिखीं। गांव के लोगों के लिए आम दिनों की ही तरह शुक्रवार का दिन भी सामान्य ही था।
अधिकांश गांव वालों को जानकारी नहीं
अधिकांश गांव वालों को जानकारी ही नहीं थी कि आखिर हुआ क्या है। उन्हें इतना तो पहले से पता था कि चंपई विधायक हैैं लेकिन वे मंत्री बने हैैं, यह सूचना किसी को न थी। हां, कुछ लोग अवश्य जानते भी थे कि चंपई के मंत्री बनने की बात चल रही है, लेकिन उन्हें यह ठीक-ठीक मालूम नहीं था कि आखिर 'मंत्रीÓ पद होता क्या बला है?
अब भी है चंपई का मिïट्टी से बना पुश्तैनी घर
चंपई सोरेन भले कई बार विधायक रहे हों और अब मंत्री भी बन गए हों, लेकिन वे न तो शहर से दूर बसे, न अपना गांव छोड़ा और न ही मिïट्टी से बने अपने पुश्तैनी घर को तोड़ा। उन्होंने महलनुमा घर बनाया तो है लेकिन पुश्तैनी घर को तोड़ कर नहीं। मिïट्टी से बना घर आज भी चंपई के घर पहुंचते सबसे पहले स्वागत करता है।
संयुक्त परिवार की मिसाल सोरेन बखुल
सोरेन बखुल (हवेली) संयुक्त परिवार की मिसाल है। यहां चंपई सोरेन का पूरा परिवार तो रहता ही है, उनके दो भाई दिकू सोरेन और जवाहरलाल सोरेन का परिवार उनके साथ ही रहता है। पिता सिमल सोरेन, माता माधो सोरेन आज भी परिवार के अभिभावक हैैं। चंपई के बड़े बेटे सिमल सोरेन व मझले बेटे बाबूलाल सोरेन अपनी पत्नी संग परिवार का हिस्सा हैैं तो बेटे बबलू सोरेन, आकाश सोरेन समेत बेटी माधो सोरेन, दुखनी सोरेन व बाले सोरेन भी साथ ही हैैं।
चंपई के आगमन पर मनेगा सोहराय
जिलिंजगोड़ा गांव में इस बार सोहराय समय से पहले ही आ जाएगा। गांव का लाल मंत्री बना है, इसलिए गांव वालों के तैयारी है कि इस बार जब चंपई गांव आएंगे तो उनका स्वागत समारोह किसी पर्व से कम न हो। जिलिंजगोड़ा गांव के माझी बाबा (ग्रामप्रधान) राहुल सोरेन के मुताबिक चंपई के आगमन पर पूरे गांव को फूलों से सजाया जाएगा। उनका स्वागत संथालों के पारंपरिक दासाय नृत्य से किया जाएगा। गांव के ही मानिक हांसदा ने कहा कि चंपई का स्वागत ऐतिहासिक होगा।
Monday, October 4, 2010
ARJUN MUNDA फटफटिया का फेफड़ा, खदरधारियों की जमात
घर आए सरकार निगाहें थीं बेताब
भादो माझी, जमशेदपुर : दोपहर के 3.39 बज रहे थे। मन विचलित था, कहीं मुख्यमंत्री साहब का काफिला 'टाटा' बोल मेरे पहुंचने से पहले ही न निकल जाए। फटफटिया का फेफड़ा धुक-धुका हवा से बातें करता आखिर पहुंच ही गया पारडीह काली मंदिर।
यहां तो मजमा पहले से लगा था। झक सफेद कुर्ता-पायजामा पहने नेताओं की फौज कतार लगाए खड़ी थी। लग रहा था मानो खादी वाले किसी जंग की तैयारी में हों। चंद्रशेखर मिश्रा, विनोद सिंह के साथ-साथ रघुवर खेमे वाले भी तैनात। देवेंद्र सिंह और योगेश मल्होत्रा आगे-पीछे किए जा रहे थे। खैर, राहत की बात यह थी कि सीएम साहब अभी आए नहीं थे, सो इंतजार की घडिय़ां गिनने लगा। देखते-देखते 15 मिनट गुजर गए। मन में आया, थोड़ी और देर से ही आता तो ठीक था, बेकार ही फेफड़ा फूंका। इंतजार की घडिय़ां भारी लगने लगीं। खादी फौज भी बढ़ती गई। अभी जल्दी आने के लिए खुद को कोस ही रहा था कि डीसी मैडम हिमानी पांडेय और एसएसपी साहब अखिलेश झा संग सिटी एसपी जतिन नरवाल भी इंतजार में घड़ी की सुइयों से सवाल करते दिखे।
फिर मन को तसल्ली दी कि डीसी, एसपी खड़े-खड़े 33.1 डिग्री की गर्मी में धूप सेंक रहे है, तो मै भी कुछ मेहनत कर ही लूं। अभी कुछ ही दिनों पहले की तो बात है, अर्जुन मुंडा शहर आए, और एसएसपी साहब को पता भी न चला। तब मुंडा जी विधायक दल के नेता भर थे, अब देखिए सत्ता शिरोमणि बनते ही डीसी-एसपी पिछले पौने घंटे से पारडीह में पसीना बहा रहे है। डीसी भी तो कुछ दिन पहले मिलने पहुंचे भाजपाई भीड़ पर खासी नाराज हुई थीं, लेकिन आज वही भीड़ के बीच जगह पाने को मशक्कत कर रही थीं। मजे की बात यह कि मंदिर की सीढ़ी से सट कर आईएएस-आईपीएस ट्रैफिक कंट्रोल कर रहे थे कि दनदनाती लाल झंडे वाली सूमो सामने से गुजरी। संकेत मिल गया कि सीएम साहब पधार गए हैं, फिर क्या था 'खादी फौज के अंदर तो मानो दोगुना जोश आ गया। सिंगा बाजा बजने लगा, भीड़ में चेहरा दिखाने की जंग शुरू हो गई। सफेद चमचमाती एम्बेसडर कार आकर ठीक मंदिर के सामने रुकी और उसमें से उतरे जमशेदपुर के लाल अर्जुन मुंडा। कैमरे के फ्लैश चमकने लगे, और खादी फौज की जंग जोरदार होने लगी। धक्का-मुक्की, चिल्ल-पौं अपने शबाब पर। सफारी सूट वाले सुरक्षा कर्मी फार्म में आ चुके थे। लगे धकियाने खादी-फौज को। ऐसे में कौन महानगर अध्यक्ष और कौन व्यापार प्रकोष्ठ अध्यक्ष...कोई समझ नहीं आया। सब घिघियाते सीएम से सटने के प्रयास में अंतिम ताकत तक जूझते रहे। किसी तरह जिद्दोजहद के बीच मुंडा पारडीह कालीमंदिर में जूता उतार कर घुस गए। उनकी पत्नी ने काबिल कूटनीतिज्ञ का परिचय देते हुए भीड़ से अलग चुपके से मंदिर में प्रवेश किया। बहरहाल मुंडा मंदिर घुसे, पूजा की और मंदिर के पुजारियों संग कुल्हड़ में चाय भी पी। फिर निकल गए नगर प्रवेश के लिए। मुंडा मंदिर से निकले तो एसएसपी ने अगवानी की। मंदिर की सीढ़ी पर मुंडा रुके और कार्यकर्ताओं का अभिवादन किया। इतने भर में कार्यकर्ता गदगद। फिर वे गाड़ी में सवार हो निकल गए धूल उड़ाते। एसएसपी-डीसी भी मुंडा के साथ हो लिए। मैं भी हो लिया अपनी फटफटिया से। दो दर्जन से अधिक सैकड़ों सीसी वाली गाडिय़ों से लोहा लेती मेरी फटफटी भी आज तो जोश में थी। किसी तरह आगे बढ़ा तो देखा कि तय रूट-चार्ट अचानक बदल दिया गया। काफिला मानगो थाना रोड के बजाय डिमना रोड की ओर मुड़ गया। मरता क्या न करता, मैं भी पीछे दौड़ा। सोचा कुछ छूट गया तो आफिस में क्लास लगेगी। शॉर्टकट हो लिया मानगो थाना रोड से। रास्ते में देखा तो नजारा गजब का था। मुंडा की अगवानी में खड़े भाजपाई दुखी-हताश। वजह, मुंडा दूसरे रास्ते निकल लिए। सड़क किनारे टेंट लगाए भाजपाइयों को सड़क से आते-जाते बस्ती वाले मुंह चिढ़ाते लग रहे थे। खैर शॉर्टकट के चक्कर में मैैं पहले पहुंच गया मानगो चौक। यहां पहले से भाजपाई मोर्चा संभाले खड़े थे। विकास सिंह, जगदीश सिंह मुंडा ने कमान संभाल रखी थी, तो विक्षुब्ध खेमे के मनोज सिंह भी मोर्चे पर थे। जैसे ही मुंडा पहुंचे क्रेडिट वार शुरू हो गया। इस क्रेडिट वार में झामुमो वाले भी बाबर के नेतृत्व में उतर गए। इस दौरान मानगो में सत्ता का रसूख तब दिखा तब सीएम के लिए रास्ता साफ रखने के लिए एक तरफ की सड़क बंद कर दी गई। इससे मैं भी फंस गया। मुख्यमंत्री का काफिला सायरन बजाता वहां से निकल गया। किसी तरह पुलिस वालों को हनक दिखा मैैं आगे बढ़ा। शीतला मंदिर के पास फिर सिपाही ने रोक दिया। हाथ में लाठी थी वरना ढीठ की तरह बढ़ ही जाता। सो, सिपाही को किनारे निकलने दिया और आगे बढ़ा लेकिन आगे फिर फंस गया। हार कर बाद में 'सब-वे का सहारा लेना पड़ा। साकची की आधी ट्रैफिक मेरे पीछे हो ली और हम एमजीएम हॉस्टल के सामने से आमबगान की ओर निकल गए। होटल स्मिता के सामने निकले तो चूड़ी पहनी पुलिसवालियों ने मुस्कुराते हुए कहा -'इधर से नहीं।फिर शुरू हुई साकची गोलचक्कर पहुंचने की मेरी जंग। किसी तरह टैगोर एकेडमी की तरफ से पहुंच ही गया। यहां सड़क खाली करा, चारों और ट्रैफिक रोक मुंडा की सभा शुरू हो चुकी थी। अमरप्रीत सिंह काले माइक थामे मुंडा महिमा में लीन थे और महानगर अध्यक्ष चंद्रशेखर मिश्रा, पूर्व अध्यक्ष विनोद सिंह, नंदजी प्रसाद, महेशचंद्र शर्मा स्टेज पर चढऩे की जिद्दोजहद कर रहे थे। सभा हुई, मुंडा ने दावे किए, घोषणाएं कीं। नसीहत भी दे डाली कि माला पर पैसे खर्च न करो, गरीबों में पैसे बांटो। पर फिर भी सीएम से सटने के लिए 51-51 किलो की माला लेकर लोग मंच पर चढ़ते रहे। यहां मुंडा जी को टोपी पहनाई गई। लेकिन इस दौरान बीच सड़क पर मुंडा को देखने के लिए भीड़ खूब जुटी। इसके बाद काफिला पहुंचा भाजपा कार्यालय, ठीक बसंत टाकिज के सामने। यहां भी सीएम के लिए सड़क बंद कर दी गई थी। बेचारा मैैं भी फंस गया। गाड़ी डायमंड वस्त्रालय के सामने खड़ी कर सभा में गया। मुंडा जी की आवभगत में यहां भी खास इंतजाम था। छोटा सा मंच था, और हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष मंच टूटने से जख्मी हुए थे, इसलिए एसएसपी व डीसी मंच बचाने के लिए पसीना बहाते दिखे। खुद एसएसपी ने नेताओं को मंच से उतारना शुरू किया, लेकिन उतरने को कोई तैयार कहां हो रहा था। चंद्रशेखर मिश्रा से मदद मांगी, एक की ओर इशारा भी किया, लेकिन वह एसएसपी के कहने पर उतरा तो जरूर, लेकिन एसएसपी की नजर हटते ही फिर जा चढ़ा। यहां मुंडा मुकुट धरे दिखे, हाथों में तलवार भी सजी, लेकिन लगे हाथों कार्यकर्ताओं को नसीहत दे डाली कि मुख्य सड़क पर कार्यक्रम न करें। कहा-सीएम ही सड़क जाम करेगा क्या? शोभा सामंत व विनोद सिंह ने यहां मंच की शोभा बढ़ाई। यहां से काफिला निकल गया घोड़ाबांधा के लिए। चूंकि मेरी गाड़ी दूर खड़ी थी, सो ज्यादा मेहनत न करते हुए पीछे आ रहा हूं...की तर्ज पर आराम से हिलते हुए पीछे हो लिया। मजे की बात यह कि साकची से घोड़ाबांधा तक करीब आधा दर्जन जगहों पर मुंडा का स्वागत हुआ। फटफटी की गर्दन मरोड़ किसी तरह घोड़ाबांधा पहुंचा तो यहां नजारा दिलचस्प दिखा। झारखंड मुक्ति मोर्चा पूरी तरह भगवा रंग में रंगा दिखा। रामदास सोरेन-अर्जुन मुंडा भाई-भाई के अंदाज में दिखे। मुंडा पहुंचे तो पहले रामदास से गले लगे। दोनों हाथों में हाथ लिए मुंडा आवास के पास पहुंचे। इतने में उनके घर की छत से आतिशबाजी शुरू हो गई। अचानक लगा घोड़ाबांधा में दीपावली मन रही है। घर के गेट पर सीएम साहब की मां सायरा मुंडा को पहले से ही मेरे जैसे दो-चार लोग घेरे पड़े थे। क्या चाहती है बेटे से..? क्या आशीर्वाद देंगी..? सरीखे सवाल लेकर वे उनसे जूझ रहे थे। मुंडा गेट पर पहुंचे तो मां का मन नहीं माना और आरती लेकर पहुंच गईं गेट पर। बेटे की आरती उतारी, बहू को स्नेह दिया और गृहप्रवेश कराया। साथ में रामदास भी थे, सो उन्हें भी मीठा खिला दिया। भीड़-भाड़ ज्यादा देख रामदास घर के लिए निकल गए। मुंडा अपनी पत्नी संग घर घुस गए। मैंने भी सोचा मुंडा जी सीएम हो गए है, यहीं से निकलना पड़ेगा। सांसद थे तो बैठ कर देश-दुनिया की बातें हो भी जाया करती थीं। लेकिन अचानक घर घुसते-घुसते मुख्यमंत्री जी ने मुझे आवाज दी..और कहा हॉल में बैठो आ रहा हूं। बस फिर क्या हॉल में बैठ गया अपने सीएम संग गुफ्तगू करने को। अंदर गया तो देखा डीसी मैडम, एसएसपी साहब व सिटी एसपी पहले से विराजमान हैैं। बगल में मैं भी हो लिया। वे मुझे देख अंग्रेजी में टिट-बिट करने लगे तो मैंने भी मुख्यमंत्री के पहुंचते ही संथाली में टिट-बिट शुरू की। कुछ बातचीत कर खुशी मन से चल पड़ा दफ्तर की ओर।
Monday, September 27, 2010
Thursday, September 23, 2010
Thursday, September 9, 2010
नक्सली बने आदिवासियों को राजनीति में आने का न्योता
जमशेदपुर, नगर संवाददाता : नक्सली दस्ते में शामिल हुए आदिवासियों को राजनीति में उतरने का ऑफर दिया गया है। यह ऑफर किसी और ने नहीं, बल्कि खुद पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने दिया है। सालखन ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि हिंसा से किसी का भला नहीं होगा, इसलिए नक्सली हिंसक लड़ाई लडऩे के बजाय राजनीति में आकार लोकतांत्रिक लड़ाई लड़ें। उन्होंने कहा कि नक्सली बने आदिवासियों को झादिपा में स्वागत है। वहीं नक्सली गतिविधियों पर सवाल उठाते हुए सालखन मुर्मू ने कहा कि नक्सलियों में सिद्धांत नहीं बचा। वे निर्दोषों की हत्या कर रहे हैैं और पूंजिपतियों से लेवी ले रहे हैैं। उन्होंने कहा कि नक्सली अगर शोषण, अत्याचार व आदिवासी अधिकारों की लड़ाई लड़ते तो आज आधी से अधिक इतनी समस्याएं न होतीं, लेकिन आज तक नक्सलियों ने इन मुद्दों पर बंदी नहीं बुलाई। आरोप लगाया कि नक्सलियों ने आदिवासी युवकों का बंधुवा मजदूरों की तरह इस्तेमाल कर रहे हैैं। उन्होंने नक्सलियों पर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि नक्सली अब पीडि़तों की लड़ाई नहीं लड़ रहे, बल्कि वे पूंजीपतियों को संरक्षण देने के लिए रकम ऐंठ रहे हैैं। इस दौरान सालखन ने नक्सलियों द्वारा लुकस टेटे को मारे जाने की घटना को भी दुर्भाग्यपूर्ण बताया। कहा कि ऐसी हत्या और हिंसा से किसी का भी भला नहीं हो सकता। कहा कि नक्सली अपने सिद्धांत से भटक गए हैैं और अब वे निर्दोष लोगों को निशाना बना रहे हैैं।
jamshedpur तीन मासूम आंखें कर रहीं सवाल- मां....तुम क्यों रो रही हो...?
जमशेदपुर : तीन मासूमों की मै मां हूं...। उनके मासूम सवालों का मै जवाब हूं। गूंजती है इन मासूमों की किलकारियां मेरी भी गोद में...लेकिन फिर भी दुनिया की हर मां से जुदा मै जिंदगी से उदास हूं। सवाल बनकर रह गई हूं अब इस दुनिया में...न सुहाग है न सहारा। दुनिया की भीड़ में अब रह गई हूं बेसहारा। मैं....! मै हूं अभागी चांदनी...! जिसकी जिंदगी में खुशियां चार दिन की चांदनी की तरह रही और फिर लंबी काली रात आ गई...। कल ही की तो बात लगती है जब मेरी दुनिया आबाद थी। गरीबी के आंगन में भी मेरी जिंदगी खुशहाल थी। पति था, दो बच्चे थे और इंतजार था मेरी कोख में पल रहे नए मेहमान का। लेकिन भगवान ने मेरी जिंदगी के साथ ऐसा मजाक किया कि आज मै महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कालेज (एमजीएम) अस्पताल के एक कोने में अपनी किस्मत का रोना रो रही हूं। अमावस की रात से भी ज्यादा काली है मेरी जिंदगी की हकीकत। अब तो लगता है कि शायद कोई भगवान नहीं होता, होता तो मेरी जिंदगी का यह हश्र न होता। न पति की हत्या होती, न मै दुनिया में अकेली होती। पर हुआ कुछ ऐसा ही। रोज सुबह उठती हूं तो अपने आप से कहती हूं कि काश! मेरी उजड़ी जिंदगी एक ख्वाब हो, और हकीकत में मेरा पति मेरे साथ हो...। लेकिन...हर सुबह की एक ही कहानी। मैैं अकेली मेरे बच्चे अकेले। तीन महीने गुजर गए उस वरदात को हुए जिसने मेरी जिंदगी उजाड़ दी। आखिर क्या बिगाड़ा था मैने किसी का...? क्यों मारा मेरे पति को...? क्यों रहम नहीं खाई मेरे बच्चों पर...? हत्यारों को क्यों रहम न आई मेरे पेट में पल रहे नए मेहमान पर...? भुइयांडीह में क्यों किसी ने हत्या कर दी मेरे पति शंकर की...? हां...शंकर महली नाम था मेरे पति का। बहुत प्यार करता था वह मुझसे। छायानगर के एक छोटे से घर में रहते थे हम, पर इस छोटे से घर में पूरी दुनिया की खुशियां समेट रखी थी हमने। दो बेटे थे उस समय हमारे...। नटखट...और प्यारे। दोनों हम पति पत्नी को जोड़े रखते थे। वो (पति) घर आते तो पापा-पापा कह गले से लिपट जाते...। सुबह उनके पापा काम पे जाते तो साइकिल में साथ बैठ जाते। बहुत खुश थी मै। पर मेरी खुशियों पर न जाने किसकी नजर लगी...और हमारी हंसती खेलती दुनिया उजड़ गई। किसी ने उनको मार डाला। अच्छा होता उनके साथ हमें भी मार देते...। कम से कम आज जिंदगी सवाल बनकर जवाब न मांग रही होती। सुहाग उजड़े अब तीन महीने हो गए। कल ही तो मेरे आंगन नया मेहमान आया, लेकिन खुशियां लेकर नहीं, ढेर सारे सवाल लेकर। ऐसे सवाल जिनका जवाब मै खुद नहीं जानती। एमजीएम के बेबी वार्ड में मेरी कोख से जन्मे इन नये मेहमान की आंखें मुझसे सवाल करतीं है कि ...मां मेरे पापा कहां गए..? मां...हम कहां रहेंगे...? मां...हमारी परवरिश कैसे होगी..? इन मासूम सवालों का जवाब मेरे पास नहीं। मुझे खुद समझ नहीं आता कि मै क्या करूं। पेट पालने का ठिकाना नहीं...। किसी तरह पूर्व विधायक दुलाल भुइयां के रहम से मिलने वाली मदद से पेट पल जाता है। नए मेहमान के आने से उसके बड़े भाई (तीन साल के) बहुत खुश है...। लेकिन खुशी से चमकती आंखें मेरे आसुओं की धारा को देख सहम जातीं है और बार-बार सवाल करतीं है कि मां....तुम क्यों रो रही हो...? मां... चुप हो जाओ...। लेकिन मेरे पास कोई जवाब नहीं होता...! मेरे सगे है तो सही, मायेक में मां-पापा भाई सब है, लेकिन शायद मेरी शादी से उन्हें कोई गिला रहा होगा, इसलिए शायद वक्त के बेरुखी के साथ उन्होंने भी मुझसे आंखें फेर ली है।
Tuesday, August 31, 2010
naxal jamshedpur
गुड़ाबांधा में स्कूल खोलने को महिलाओं ने की पहल
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उजाले की किरण
जमशेदपुर, नगर संवाददाता : नक्सल प्रभावित क्षेत्र गुड़ाबांधा। यहां दहशत की जुबान चलती है और गोलियों की तड़तड़ाहट से वादियां गूंजती हैै। इस इलाके में आम जिंदगी जीने की कल्पना करना फिलहाल मुश्किल है, क्योंकि ये पूरा इलाका नक्सलवाद के काले साए से पूरी तरह घिर चुका है। ....लेकिन! नक्सलवाद के काले साये से घिरे इस इलाके में महिलाओं ने उजाले की एक किरण जलाई है। हिम्मत दिखाई है नक्सलवाद के प्रभाव के बीच अपने 'कलÓ को संवारने की।
कोशिश की है सरकारी सिस्टम से खफा उग्रवादियों व शासन के बीच छिड़ी जंग के बीच अमन का रास्ता निकालने की। अगर इन महिलाओं की हिम्मत को जनप्रतिनिधियों की मदद मिली तो यह तय है कि नक्सलवाद की समस्या से जूझ रहे इन इलाकों का 'कलÓ कल्पना से कहीं बेहतर होगा। आप सोच रहे होंगे कि आखिर डुमरिया इलाके के गुड़ाबांधा थाना क्षेत्र की महिलाओं ने ऐसा क्या कर दिया, जिससे नक्सलवाद के साये का असर कम हो जाएगा...? तो आपको बता दें कि इस इलाके की महिलाओं ने नक्सलवाद के प्रभाव के कारण शिक्षा से दूर होते जा रहे अपने बच्चों को शैक्षणिक माहौल देने की पहल शुरू की है। एक ऐसी पहल जिससे उनके बच्चों को न सिर्फ अक्षर ज्ञान प्राप्त हो बल्कि नैतिक ज्ञान भी प्राप्त हो। खास बात यह कि स्कूल खोलने के लिए इन महिलाओं की पहल को अंजाम तक पहुंचाने के लिए क्षेत्र के ही एक बुजर्ग ने अपनी दो एकड़ जमीन स्कूल बनाने हेतु दान में देने की पेशकश कर दी है। अब इन्हें इंतजार है तो बस अपने सांसद अर्जुन मुंडा की मदद का। डुमरिया की इन जुझारू महिलाओं ने रविवार को बाकायदा मुंडा के आवास पहुंच कर पूर्व मुख्यमंत्री को जमीन का नक्शा दिखा कर उक्त स्थान पर कस्तूरबा गांधी उच्च विद्यालय खोलने में मदद मांगी। महिलाओं ने गुड़ाबांधा थाना क्षेत्र अंतर्गत खडिय़ाबान्दा में उक्त स्कूल खोलने की पेशकश की है। महिलाओं की स्वयं सहायता समूह 'मुंडारी समाज सुसार समितिÓ की खडिय़ाबांदा शाखा से जुड़ी इन महिलाओं में गमा मुंडा, करमी मुंडा, देवकू मुंडा, रईबरी मुंड़ा, गीतारानी मुंडा. मंजू रानी मुंडा समेत दर्जनों महिलाएं शामिल है।
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उजाले की किरण
जमशेदपुर, नगर संवाददाता : नक्सल प्रभावित क्षेत्र गुड़ाबांधा। यहां दहशत की जुबान चलती है और गोलियों की तड़तड़ाहट से वादियां गूंजती हैै। इस इलाके में आम जिंदगी जीने की कल्पना करना फिलहाल मुश्किल है, क्योंकि ये पूरा इलाका नक्सलवाद के काले साए से पूरी तरह घिर चुका है। ....लेकिन! नक्सलवाद के काले साये से घिरे इस इलाके में महिलाओं ने उजाले की एक किरण जलाई है। हिम्मत दिखाई है नक्सलवाद के प्रभाव के बीच अपने 'कलÓ को संवारने की।
कोशिश की है सरकारी सिस्टम से खफा उग्रवादियों व शासन के बीच छिड़ी जंग के बीच अमन का रास्ता निकालने की। अगर इन महिलाओं की हिम्मत को जनप्रतिनिधियों की मदद मिली तो यह तय है कि नक्सलवाद की समस्या से जूझ रहे इन इलाकों का 'कलÓ कल्पना से कहीं बेहतर होगा। आप सोच रहे होंगे कि आखिर डुमरिया इलाके के गुड़ाबांधा थाना क्षेत्र की महिलाओं ने ऐसा क्या कर दिया, जिससे नक्सलवाद के साये का असर कम हो जाएगा...? तो आपको बता दें कि इस इलाके की महिलाओं ने नक्सलवाद के प्रभाव के कारण शिक्षा से दूर होते जा रहे अपने बच्चों को शैक्षणिक माहौल देने की पहल शुरू की है। एक ऐसी पहल जिससे उनके बच्चों को न सिर्फ अक्षर ज्ञान प्राप्त हो बल्कि नैतिक ज्ञान भी प्राप्त हो। खास बात यह कि स्कूल खोलने के लिए इन महिलाओं की पहल को अंजाम तक पहुंचाने के लिए क्षेत्र के ही एक बुजर्ग ने अपनी दो एकड़ जमीन स्कूल बनाने हेतु दान में देने की पेशकश कर दी है। अब इन्हें इंतजार है तो बस अपने सांसद अर्जुन मुंडा की मदद का। डुमरिया की इन जुझारू महिलाओं ने रविवार को बाकायदा मुंडा के आवास पहुंच कर पूर्व मुख्यमंत्री को जमीन का नक्शा दिखा कर उक्त स्थान पर कस्तूरबा गांधी उच्च विद्यालय खोलने में मदद मांगी। महिलाओं ने गुड़ाबांधा थाना क्षेत्र अंतर्गत खडिय़ाबान्दा में उक्त स्कूल खोलने की पेशकश की है। महिलाओं की स्वयं सहायता समूह 'मुंडारी समाज सुसार समितिÓ की खडिय़ाबांदा शाखा से जुड़ी इन महिलाओं में गमा मुंडा, करमी मुंडा, देवकू मुंडा, रईबरी मुंड़ा, गीतारानी मुंडा. मंजू रानी मुंडा समेत दर्जनों महिलाएं शामिल है।
Monday, August 9, 2010
विश्व आदिवासी दिवस - ब्रेडली बर्ट, हम शर्मिदा हैं
भादो माझी, जमशेदपुर : लोकसभा में आदिवासी विकास पर चर्चा करने के दौरान राहुल गांधी ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा था कि जितनी योजानएं और जितनी राशि आदिवासियों के विकास के लिए केंद्र सरकार भेजती है, उसमें से 25 प्रतिशत रकम ही आदिवासी गांवों तक पहुंच पाती है। वास्तविकता बिल्कुल ऐसी ही है। क्योंकि ऐसा न होता तो आज भी आदिवासियों की हालत वैसी ही नहीं होती जैसे आज से 107 साल पहले थी। आज भी आदिवासी भूखे हैं, बेरोजगार हैं और पिछड़े हुए हैं। तभी तो अंग्रेज लेखक ब्रेडली ने सौ साल पहले आदिवासियों की स्थिति की व्यख्या अपने किताब में जैसे की थी उनकी स्थिति आज भी कमोबेश वैसी ही है। कुल लाकर विकास के मोर्चे पर आदिवासी आज तक पस्त हैं। -- टेबल देश में आदिवासियों की जनसंख्या- 8.45 करोड़ राज्य में आदिवासी जनसंख्या - 70,87068 आबादी में भागीदारी- 26.3%(राज्य) जिले में जनसंख्या- 467706(पू. सिंहभूम) आबादी में भागीदीरी- 29.7% (जिला) शिक्षा दर (इंटर पास)- 16.5% (जिला) शिक्षा दल (स्नातक)- 3% (जिला) खेती पर निर्भर आबादी- 83.6% स्कूल जाने वाला आदिवासी बच्चे -43.1% वन क्षेत्र में बसे आदिवासी - 57.3% -शून्य आय वाली आदिवासी आबादी - 33 % -- (इनसेट) जमशेदपुरः आदिवासी! फटेहाल हालत। आधे तन पर कपड़ा। सुविधाओं के नाम पर प्रकृति की गोद और घर के नाम पर जंगल की ओठ। आदिवासियों के जीवन स्तर की जीवंत तस्वीर प्रस्तुत करतीं ये पंक्तियां आज से 107 साल पहले, यानी 1903 में अंग्रेज लेखक ब्रेडली बर्ट ने अपनी किताब छोटानागपुर-ए लिटिल नोन प्रोविन्स ऑफ एम्पायर में लिखी थी। तब देश में अंग्रेजों का शासन था। आज हमारा देश आजाद है, झारखंड भी अलग राज्य के रूप में स्थापित हो चुका है, लेकिन आदिवासियों की हालत जस की तस है। इन 107 सालों में आदिवासी विकास न कर पाने के कारण सरकार, शासन, नेता शर्मिदा हों न हों, आदिवासी समुदाय जरूर शर्मिदा है। शर्मिदा इसलिए क्योंकि उनकी तस्वीर आज भी बिल्कुल 103 की ही जैसी है। अगर ब्रेडली बर्ट आज जिंदा होते तो आज भी वे आदिवासियों की ऐसी ही तस्वीर प्रस्तुत करते। -- (हाइलाइट कंटेंट) छूट रहा खेत से वास्ता : सिंचाई की व्यवस्था नहीं होने के कारण आदिवासियों का खेत से वास्ता छूट रहा है। सिंचाई हेतु स्वर्णरेखा परियोजना 1973 में 357 करोड़ की लागत से शुरू हुई थी, लेकिन उसकी हालत खुद खराब है। अब आदिवासी मजदूर बन रहे हैं, और खेत बेचने पर मजबूर किए जा रहे हैं.. - मूलभूत सुविधाएं ध्वस्त : आदिवासियों को मूलभूत सुविधाओं के नाम पर पेयजल भी उपलब्ध नहीं। नतीजा बीमारी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हर 1000 नवजात आदिवासी शिशुओं में से 83 बच्चे मर जाते हैं। यही कारण है कि आदिवासी जनसंख्या वृद्धि की दर सिर्फ 17 फीसदी है। यह तस्वीर सुविधाओं पर खुद सवाल उठा रही है। -- जंगल अब भी जीविका का आधारः आदिवासी को आज भी सरकारी सुविधाएं मयस्सर नहीं। इनकी मजबूरी आज भी इन्हें जंगल में लकड़ियां चुनने को मजबूर करती है, न नरेगा काम आता है न मनरेगा। इनका यह जीवन स्तर सरकारी योजनाओं पर सवाल है... - कंद मूल ही आहारः आदिवासी समुदाय के विकास हेतु केंद्र सरकार ने वर्ष 09-10 में 81 करोड़ रुपये स्वीकृत किए थे, लेकिन यह राशि निर्गत नहीं की गई। नतीजा सामने है। फूस के घर पर रहने की मजबूरी और कंद मूल खाने की मजबूरी सरकार की इच्छाशक्ति पर सवाल उठा रही है... |
Monday, August 2, 2010
Thursday, July 29, 2010
Wednesday, July 28, 2010
HONOUR KILLING
पिछले दिनों ऑनर किलिंग के मामलों ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। इसकी दहशत मिनी मेट्रो के रूप में विकसित हुए जमशेदपुर शहर में भी सिर चढ़ कर बोली। आधुनिकता का दम भरने वाले इस शहर में भी प्रेमी युगलों को प्यार की भारी कीमत चुकानी पड़ी। किसी को जेल की हवा खानी पड़ी तो कोई सरेआम भरी पंचायत में बेइज्जत किया गया। गनीमत यह रही कि किसी की जान नहीं गई, लेकिन प्यार के दुश्मनों ने प्यार करने वालों की जिंदगी को नरक करने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी। बता रहे हैं भादो माझी..
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=16&edition=2010-07-26&pageno=5
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=16&edition=2010-07-26&pageno=5
Monday, July 19, 2010
Saturday, July 17, 2010
Friday, July 16, 2010
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